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साथ
सिद्धि
म.11
ऐसें या संशय न जानना । जाते संशय तौ दोय पक्षवि अनिश्चित ज्ञान है अप्रमाण है । बहुरि ईहा एकही पक्षवि वांछारूप II ज्ञान है। जो वगुलाकी पंक्ति है तो वाहीकी वांछा है। जो पताका है तौ वाहीकी वांछा है। बहुरि ईहाकरि जान्या था ताका विशेप अवयवादिकका निर्णय होनेते जैसा है तैसा नियमरूप निश्चय होना सो अवायज्ञान है । जैसे ईहावि बगुलाकी पंक्तीकी तर्फ वांछा थी। परंतु धुजाका निषेध न किया । अव इहां ऊंचा चढना नीचा आवनां पंख हलावनां इत्यादि क्रिया
वचचिन्ह देखी ऐसा निश्चय भया जो बगुलाकीपंक्तिही है, धुजा नाही है; तहां अवायज्ञान कहिये । बहुरि अवायकार
नि का टी का निश्चय किया जो वस्तु ताका ऐसा दृढज्ञान होय जो और कालमैं न भूलने यादि आवनेकू कारण होय, तहां धारणा
पान ज्ञान हो है । जैसे अवायज्ञानकरि प्रभातिमें बगुलाकीपंक्ति देखी थी सोही यहु अब मैं देखी ऐसे ज्ञानकू कारण जो ज्ञान, सो धारणाज्ञान कहिये । ऐसें इनि अवग्रहादिकनिका कहनेका अनुक्रम इनकी उत्पत्तिके अनुक्रमतें कह्या है ॥ . इहां ऐसा भावार्थ जाननां - जो वस्तु सामान्यविशेषस्वरूप है तिस वस्तुकै अरु इंद्रियनिकै संबंध होतें प्रथम तो सामान्य अवलोकनरूप निराकार दर्शन होय है तापीछे ता वस्तुका सामान्यविशेपरूप साकार ग्रहण होय ताकू अवग्रह कहिये । तापीछै तिसही वस्तूमें विशेष बहुत हैं तिनिमैतें कोई वस्तुके विशेपरूप जाननेकी अभिलापारूप ज्ञान प्रवर्ता, जो, ' यह फलाणा विशेष होगा ' ताकू ईहा कहिये । तापीछे तिसही विशेषकी क्रियाचिन्हि देखी यहु निश्चय भया, जो, — यहु अभिलापामें ग्रहण हुईथी सोही है ' ता• अवाय कहिये । तापीछे तिसहीवि ऐसा ज्ञान : दृढ भया, जो, ' अन्यकालमैं वाकू भूलिसी नाही ' ताकू धारणा कहिये । इनिमें विपयका भेद भया, तातें गृहीतका ग्रहण नाही है । बहुरि सामान्यपणे वस्तुका रूप ग्रहण है, तातें नय भी नांही है। बहुरि विषय सत्यार्थ निर्बाध है ताते प्रमाण है । बहुरि इंद्रियमनकै पदार्थसंबंध होनेते किंचित् स्पष्टता भी इनिमें है । तातै व्यवहारकरि प्रत्यक्ष भी इनि कहिये हैं । परमार्थते परोक्षही है । बहुरि अन्यवादी सर्वथा एकांत वस्तुका स्वरूप मानै हैं । तिनिकै अवग्रहाया दिक भेदरूप ज्ञानकी कथनीही नांही ऐसें जानना ॥ ___ आगैं, कह्या जे अवग्रहादिक तिनिके भेदकी प्राप्तिकै अर्थि सूत्र कहै हैं
॥ बहुबहुविधक्षिप्रानिस्सृतानुक्तध्रुवाणां सेतराणाम् ॥ १६ ॥ याका अर्थ-कहे जे अवग्रहादिक, ते बहु आदि छह बहुरि छहही इनके प्रतिपक्षी तिनिसहित बारह भये, तिनिका ज्ञान होय है ॥ प्रकृत. कहिये पूर्व कहे जे अवग्रहादिक ज्ञानरूपक्रियाका विशेष तिनिकी अपेक्षारूप या सूत्रवि षष्ठी