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सर्वार्थ
वच
निका
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उत्तर- ए इंद्रिय हैं ते प्रतिनियत कहिये नियमरूप जुदाजुदा जिनका देश अरु विषय है ऐसे हैं । बहुरि कालांतरस्थायी हैं । जा कालमें विषयत उपयुक्त न होय ता कालमें भी अवस्थित हैं । बहुरि मन है सो यद्यपि इंद्र कहिये आत्मा ताका लिंग है तथापि नियमकार एकही देशवि तथा एकही विपयका ग्राहक नाही । अन्यकालमैं जाका अवस्थान नाही अनवस्थित है चंचल है । याहीत याकू अंतःकरण कहिये अभ्यंतर इंद्रिय कह्या है । जातें गुणदोषका विचार ||
स्मरणवि4 इंद्रियनिकी याकै अपेक्षा नाही है। बहुरि नेत्रादिककी ज्यौं बाह्यतें अन्य मनुष्यादिक तिनिकार न जाणिये टी का ।। है । ताहीत अंतर्गत इंद्रिय ऐसा कहिये है । ऐसे ईपत् अर्थ यावि. संभवै है॥
पान बहुरि कोई पूछ है- सूत्रविर्षे तत् शब्द किस प्रयोजनकू है ? ताका उत्तर- तत् शब्द मतिज्ञानके कहनेकै अर्थ है। बहुरि कोई कहै है- मतिज्ञान तो लगताही है अनंतरही है। यातें ऐसा परिभाषा है, जो, अनंतरकी विधिका सूत्र होयकै निपेधका होय । याते ता मतिज्ञानका विना तत् शब्दही ग्रहण होय है। तत् शब्द निरर्थक है । ताकू कहिये हैंइहां तत् शब्द है सो इस सूत्रके अर्थि भी है बहुरि अगले सूत्रके अर्थि भी है । जो मत्यादिक पयाय शब्दकार कहने में आवै । ऐसा मतिज्ञान है सो इंद्रियानिद्रियनिमित्तक है । ऐसें तो इस सूत्रकै आर्थि भया । बहुरि सोही मतिज्ञान अवग्रह ईहा अवाय धारणास्वरूप है ऐसे अगिले सूत्रकै अर्थि भया । जो ऐसें न होय तत् न कहिये तो पहले मत्यादिशब्दकरि वाच्यज्ञान है ऐसैं कहिवेकरि इंद्रिय अनिंद्रियनिमित्तक श्रुतज्ञान है ऐसा प्रसंग आवै । तथा सोही श्रुतज्ञान अवग्रह ईहा अवाय धारणास्वरूप है ऐसा अनिष्ट अर्थका संबंध होय है । वहुरि यहु विशेष जाननां- जो ए इंद्रिय मन है ते मतिज्ञानके वाह्य उत्पत्तिनिमित्त हैं। अंतरंग निमित्त तौ मतिज्ञानावरणीय कर्मका क्षयोपशम ही है। _आगे कहै हैं, ऐसे मतिज्ञानका उत्पत्तिका निमित्त तौ जाण्या, परंतु याके भेद केते हैं ? यह निर्णय न भया । ऐसा प्रश्न होते याके भेदनिकी प्राप्तिकै अर्थि सूत्र कहै हैं
॥ अवग्रहेहावायधारणाः ॥१५॥ याका अर्थ-- अवग्रह ईहा अवाय धारणा ए च्यारि मतिज्ञानके भेद हैं ॥ इनिका लक्षण कहिये हैं । विपय जे: रूपादिक बहुरि विपयी जे इंद्रिय तिनका संबंध होते ताका लगताही तौ दर्शन हो है । ताके लगताही वस्तुमात्रका ग्रहण सो अवग्रह है । जैसे नेत्रकरि यह श्वेतरूप है ऐसे ग्रहण सो अवग्रह है । बहुरि अवग्रहकरि ग्रहण किया जो वस्तु ताका विशेपकी वांछा सो ईहा है । जैसे अवग्रहकरि श्वेतरूप देख्या सो कहा वगुलाकी पंक्ति है अथवा कहा धुजा है ?