________________
सर्वार्था
भ."
संक्षेपते दोय भेद है; उपलब्धि अनुपलब्धि । तहां इंद्रिय मनकरि वस्तुका सद्भावका ग्रहण होय सो तो उपलब्धि कहिये । बहुरि अभावका ग्रहणकू अनुपलब्धि कहिये । तहां कार्योपलब्धि जैसे; या पर्वतमैं अग्नि है, जाते अग्निका कार्य । धूम दीखे है। बहुरि कारणोपलब्धि जैसे; वर्षा होसी, जाते याका कारण बादल सघन दीखै है । स्वभावोपलब्धि जैसे, वस्तु उत्पादव्ययध्रौव्यस्वरूप है; जातें सत्त्वस्वरूप है । सत्त्वका स्वभाव ऐसाही है । ऐसें ये तीन भेद भये । इत्यादि साधनके अनेक भेद हैं, सो श्लोकवार्तिकतें जानने ॥ बहुरि अन्यवादी अर्थापत्त्यादिक प्रमाण न्यारे मानै हैं ते सर्व इस
वचसिद्धिा
निका टीका । मतिज्ञानमें अंतर्भूत होय हैं, ऐसें जाननां ॥
पान आगें या मतिज्ञानका स्वरूपका लाभवि निमित्त कहां है ? ऐसे प्रश्न होते सूत्र कहे हैं
॥ तदिन्द्रियानिन्द्रियनिमित्तम् ॥ १४ ॥ याका अर्थ- तत् कहिये सो मतिज्ञान इंद्रिय अर अनिद्रिय है निमित्त कहिये कारण जाळं ऐसा है ॥ प्रथम तौ इंद्रियशब्दका अर्थ कहै हैं । इन्दति कहिये परम ऐश्वर्यरूप वतै सो इंद्र है । तहां अर्थतें आत्माका नाम इंद्र कह्या, सो ऐसा ज्ञानस्वभाव जो आत्मा, ताकै ज्ञानावरणकर्मका ऐसा क्षयोपशम होय, जो आप आपतेही पदार्थनिकं जानने असमर्थ होय । ताकै पदार्थ जाननेका कारण चिन्ह होय ताकू इंद्रिय कहिये । जाते व्याकरण ऐसा है 'तस्य लिंगम् । इस अर्थमैं इंद्रशब्दकै प्रत्यय आया है । अथवा ऐसा भी अर्थ जो गूढ अर्थकू जनावै ताकू लिंग कहिये । तहां आत्मा
गूढ है अदृष्ट है । ताके अस्तित्वकू जनावनेवि चिन्ह है तातें आत्माका लिंग इंद्रिय है । जैसे लोकमैं अग्निका धूम लिंग | है तैसें जाननां । ऐसे यह स्पर्शादि इंद्रिय हैं ते करण हैं । सो कर्ता जो आत्मा तिसविना न होय ऐसें ज्ञाता जो
आत्मा ताका अस्तित्व जनावै है । अथवा इंद्र ऐसा नाम कर्मका कहिये । ताकार ये रचे हैं निपजाये हैं। ताते भी | इंद्रिय ऐसा कहिये । ते स्पर्शनादि आगें कहसी ॥
बहुरि अनिद्रिय नाम मनका है । या• अंतःकरण भी कहिये । इहां कोई पूछे है- इंद्र जो आत्मा ताहीका लिंग जो मन ताका नाम इंद्रियका प्रतिषेधकरि अनिद्रिय ऐसा नाम कैसे दिया? ताका उत्तर-जो, इहां इंद्रियका प्रतिषेधकर 16 नाही है । 'न इन्द्रियं अनिन्द्रियं' ऐसें कहनेमें ईषत् अर्थ लेना । किंचित् इंद्रियकू अनिंद्रिय कह्या है। जैसे काहू
कन्याकू अनुदरा नाम कह्या, तहां जाके उदर न होय ताकू अनुदरा कहिये ऐसा अर्थ न लेना । जाका ईपत् किंचित् Lal पतला क्षीण उदर होय ताकू अनुदरा कहिये ऐसा अर्थ लेना । बहुरि कोई पूछ है- इहां ईषत् अर्थ कैसे है ? ताका |1