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वचनिका
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विभक्तीकरि कर्मका निर्देश किया है। तहां बहु शब्द तो यहां संख्या तथा विपुल कहिये समूहपणाका वाचक है M जाते दोऊमैं विशेष नाही । सामान्यसंख्या तथा वहुतका ग्रहण करना । जैसैं एक दोय बहुत ऐसें तौ संख्या । बहुरि
भात बहुत है दालि बहुत है इहां विपुलताही है संख्या न कही । बहुरि विधशब्द प्रकारवाची है, जैसे बहुतप्रकार है ।
BI बहुरि क्षिप्रशब्दका ग्रहण कालकी अपेक्षा है । जैसे कोई वस्तु शीघ्र परिणमै बहुरि अनिःसृत कहिये सिदि शरीरादिक प्रगट नीसरे न होय सो अनिःसृत है । बहुरि अनुक्त कहिये अभिप्रायहीकरि जाका ग्रहण होय काहूके कहटी का । नेकी यामैं मुख्यता नाही । बहुरि ध्रुव कहिये निरंतर जाका जैसाका तैसा ग्रहण होवो करै ताकू कहिये । बहुरि सेतर
पान । कहिये इनिके प्रतिपक्षीकरि सहित लेणै । सो बहुतका तौ प्रतिपक्षी एक तथा अल्प । बहुविधका एकविध । क्षिप्रका मा अक्षिप्र । अनिःसृतका निःसृत । अनुक्तका उक्त । ध्रुवका अध्रुव । ऐसै ये बारह भये । तिनि अवग्रहके बारहके बारह
भेद भये । बहुतका अवग्रह, अल्पका अवग्रह, बहुविधका अवग्रह, एकविधका अवग्रह, क्षिप्रका अवग्रह, अक्षिप्रका अवग्रह, अनिःसृतका अवग्रह, निःसृतका अवग्रह, अनुक्तका अवग्रह, उक्तका अवग्रह, ध्रुवका अवग्रह, अध्रुवका अवग्रह, ऐसे बारह भेदरूप अवग्रह है । ऐसेंही ईहा, अवाय, धारणा इनि तीनिकै भी बारह बारह भेद कीजिये । तब सर्व मिले अठतालीस ४८ होय है।
वहुरि ये पांच इंद्रिय एक मन इनि छहूंनिकार होय है । तातें छहवार अठतालीसकूँ जोडिये तब दोयसे अठ्यासी भेद होय हैं । बहुरि बहु आदिक छहके नाम सूत्रमैं कहै अरु छह इनि प्रतिपक्षीकू इतर कहे, ताका प्रयोजन यह हैBI जो बहु आदिक तौ मतिज्ञानावरणका क्षयोपशम बहुत होय तव होय है । तातें ये प्रधान हैं । तातें इनिकू पहलै
कहे । बहुरि अन्य हैं ते तिसतें थोरे क्षयोपशमतें होय हैं । तातै तिनिकं पीछे कहै । इहां कोई पूछे है; बहुवि अरु | बहुविधवि कहा विशेप है ? तहां कहिये बहुपणा तौ बहुवि भी है बहुविधवि भी है। परंतु एकप्रकार नानाप्रकारका विशेप है । बहुरि कोई पूछे उक्त निस्सृतविपें कहां विशेप है ? समस्त नीसऱ्या प्रकट होय ताकू निःसृत कहिये उक्त भी ऐसाही है । तहां कहिये परके उपदेशपूर्वक ग्रहण होय सो उक्त है आपहीते ग्रहण होय सो निःसृत है यह विशेप : है । बहुरि केई आचार्य क्षिप्र निःसृत ऐसा पाठ पढे हैं। तामैं निःसृत पहले छहमैं आवै है । ते याका ऐसे उदाहरण कहै हैं । जैसै श्रोत्रइंद्रियकरि पहली शब्दका अवग्रह हुवा । तहां यहु मयूरका शब्द है तथा कुरचिका शब्द है ऐसे कोई जाणै ताकुं तौ निःसृत कहिये बहुरि अनिस्सृत याते अन्य शब्दमात्रही है ऐसा जाने है बहुरि कोई पूछे, ध्रुवअवग्रहवि अरु धारणाअवग्रहवि कहा विशेप है ? तहां कहिये है- क्षयोपशमकी प्राप्तिके कालविर्षे शुद्धपरिणामके संतान