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सार्थ
वच
निका
संख्या कहिये यह वस्तु केती है, ऐसे भेदनिकी गणना कहनां । क्षेत्र कहिये यह वस्तु वर्तमानकालमैं एते क्षेत्रमैं है, ऐसा कहना । स्पर्शन कहिये यह वस्तु तीन कालमै एते क्षेत्रमैं विचरै है, ऐसा कहनां । काल कहिये निश्चय व्यवहाररूप है, सो जिस वस्तुकी अपेक्षा जेता कालका परिमाण कहनां। अंतर कहिये एकगुणते दूसरै गुण जाय फेरी तिसही गुण आवै ताकै बीचि जेते काल रहैं, सो विरहकाल है, ताकू अंतर कहिये, ताका कहनां । भाव कहिये औपशमिक आदि पांच भाव ।।
हैं, तिनिका कहना । अल्पबहुत्व कहिये परस्पर दोयकी अपेक्षा” संख्याका हीनाधिकपणां कहनां । ऐसें इनि आठ अनुटी का || योगनिकार वस्तुका अधिगम होय है । तिसका उदाहरण जीवनामा वस्तुका गुणस्थान मार्गणाकार कह्या सो जाननां । RICE
ऐसेंही यथासंभव आगमके अनुसार सर्ववस्तुपरि लगावणां । केई नास्तिकवादी वस्तूकू सर्वथा अभावरूपही कहै हैं, तिनिका निराकरण सत् कहनेतें होय है । केई वस्तुकू सर्वथा एक अभेद कहै हैं, तिनिका निपेध भेदनिकी गणनातें जाननां । केई वस्तुके प्रदेश नांही मानै है तिनिका निषेध क्षेत्र कहनेतें जाननां । केई वस्तुळू सर्वथा क्रियारहित माने हैं तिनिका निषेध स्पर्शन कहनेतें जाननां । अथवा जो कोई वस्तुका सर्वथा कदाचित् प्रलय होना मान है तथा क्षणिकही मान है तिनिका निषेध कालका नियम कहनेते होय है । केई वस्तुकू क्षणिकही मानै हैं तिनिका निषेध अंतरके नियम कहनेतें होय है । केई वस्तूकं एकही मानै है तथा अनेकही मान हैं तिनिका निषेध अल्पबहुका नियम कहनेते होय है । ऐसै वस्तु अनंतधर्मात्मक है । ताके द्रव्य क्षेत्रकाल भावकी अपेक्षा विधिनिषेधते प्रमाण नय निक्षेप अनुयोगकी विधिकरि साधनेते यथार्थज्ञान होनेते अधिगमज सम्यग्दर्शनकी प्राप्ति होय है । सो याका विधिनिषधका चर्चा श्लोकवार्तिकमैं विशेपकार है तहांतें जाननां । ऐसें आदिवि कह्या जो सम्यग्दर्शन ताका लक्षण उत्पत्ति निमित्त स्वामी विपय न्यास अधिगमका उपाय कह्या । याके संबंधकरि जीवादिकका भी सत् परिमाणादिक कहै है ॥ याके अनंतर सम्यग्ज्ञान विचारनेयोग्य है, सो कहै हैं
॥ मतिश्रुतावधिमनःपर्ययकेवलानि ज्ञानम् ॥ ९॥ याका अर्थ- मति श्रुत अवधि मनःपर्यय केवल ए पांच ज्ञान है ॥ ज्ञानशब्द न्यारान्याराकै लगाईये ऐसै पांचूही ज्ञान भये । तहां मतिज्ञानावरणीयकर्मके क्षयोपशमतें इंद्रियमनकरि पदार्थनिषं जानै सो, अथवा जाकार जाणिये सो, अथवा जाननेमात्र सो, मतिज्ञान है । बहुरि श्रुतज्ञानावरणीयकर्मके क्षयोपशमतें वक्ताकार कही वस्तूका नाम सुननेकार जानै सो, अथवा जाकार सुनि वस्तुकं जानिये सो, अथवा जो श्रवणकार जानने मात्र सो श्रुतज्ञान है । इन दोऊनिका