________________
टीका
1) समीप निर्देश कार्यकारणभावतें कह्या । मतिज्ञान कारणरूप है श्रुतज्ञान कार्यरूप है । बहुरि अवधिज्ञानावरणीयकर्मके 111
क्षयोपशमते द्रव्य क्षेत्र काल भावकी मर्यादा लीयें रूपी पदार्थकू प्रत्यक्षपणे करि जो जानें, अथवा जाकार जानिये, अथवा जानने मात्र सो अवधिज्ञान है । बहुरि मनःपर्ययज्ञानावरणीयकर्मके क्षयोपशमते परके मनविर्षे प्राप्त जो पदार्थ
ताकू जाणे, अथवा जाकरि जानिये, तथा जो जानना सो मनःपर्ययज्ञान कहिये । इहां परके मनविर्षे प्राप्त जो पदार्थकू सर्वार्थ
व चसिद्धि मन ऐसी संज्ञा साहचर्यतें कही है । इहां कोई कहै याकै मतिज्ञानका प्रसंग आवै है ? ताळू कहिये इहां मनकी अपेक्षा
निका BI मात्रही है, कार्यकारणभाव नाही है । अपने प्रतिपक्षी कर्मके क्षयोपशममात्रतेही भया है । ताळू अपने परके मनकी पान
अपेक्षामात्रते मनःपर्यय ऐसी. संज्ञाकरि कह्या है । जैसे काहूनें कही या बादलेवि चंद्रमाकू देखो, तहां बादलेकी अपेक्षामात्र है । चंद्रमा बादलेतें भया तौ नाही । तैसे इहां भी जाननां । बहुरि जा ज्ञानके आर्थि तपस्वी मुनि 'केवंते' कहिये सेवन करै ताकू केवलज्ञान कहिये । इहां ' के सेवने । ऐसी धातु" केवलशब्द निपज्या है । अथवा यहु ज्ञान असहाय है बाह्य कछु सहाय न चाहै है । जैसे मतिश्रुतज्ञान इंद्रिय प्रकाशादिकका सहायतै जाने है, तैसे इहां नाही, केवल एक आत्माहीत प्रवत है । तातें केवल कहिये । अब इनिका सूत्रविर्षे प्रयोगके क्रमका प्रयोजन कहै हैं ॥
केवलज्ञान अंतवि पाईये है, तातें अंतहीमैं धन्य है । ताके निकट मनःपर्ययज्ञान हो है, तातै ताके समीप धन्य है।। तातें ये दोऊ ज्ञान संयमी मुनिनिहीकै होय है । बहुरि तातें दूरवर्ति अवधि है तातें मनःपर्ययकै समीप याको कह्या । बहुरि प्रत्यक्ष तीनूं ज्ञाननिकै पहलै परोक्ष मति श्रुत ज्ञान कहै । जाते ए दोऊ सुगम हैं । सर्वप्राणिनिकै बाहुल्यपणे पाइये है । इनकी पद्धती सुणिये है परिचय कीजिये है । अनुभवमैं आवै है । ऐसें ए पांच प्रकार ज्ञान है । इनके भेद आगै कहसी । इहां मतिमात्रके ग्रहणते स्मरणादिक भी मतिज्ञानहीमें लेनै । केई वादी कहै हैं इंद्रियबुद्धिही एक मतिज्ञान है | ताका निराकरण है । तथा केयी अनुमानसहित मति मान हैं । केई अनुमान तथा उपमानसहित मानें हैं । केई अनु| मान उपमान अर्थापत्तिसहित तथा अभाव आगमसहित मानें है । तिनि सर्वनिका निराकरण है । ए सर्वही मतिज्ञानमैं गर्भित जाननें । कोई कहै मति श्रुत ज्ञान तौ एकही है । जाते दोऊ लार है एकही आत्माविर्षे वसे हैं । विशेष
भी इनिमें नांही। ताकू कहिये इन तीही हेतुते इनिकै सर्वथा एकता नाहीं है। कोई प्रकार कहै तौ विरोध नाही हैं। | जाते लार रहै है इत्यादि कहना दोय विना बनैं नाही । बहुरि विपयके भेदतें भी भेदही है । श्रुतज्ञानका विषय सर्वतत्त्वार्थकू परोक्ष जाननां है। मतिज्ञानका एता नांही। ऐसैं इनिकी भेदाभेदकी चरचा श्लोकवार्तिकतें जाननी । इहां कोई
क्षणका सूत्र न्यारा कह्या बहुरि ज्ञानका न कह्या सो कारण कहा ? ताका उत्तर जो, जहां शब्दकी