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________________ निका पान 9. दर्शनके अनुवादकरि चक्षुर्दर्शनवालेनिकै मनोयोगीवत् है । अचक्षुर्दर्शनवालेनिकै काययोगीवत् है। अवधिदर्शनवालेनिकै || अवधिज्ञानीवत् है। केवलदर्शनवालेनिकै केवलज्ञानीवत् है॥ लेश्याके अनुवादकार कृष्णनीलकापोतलेश्यावालेनिकै असंयतवत् है। पीतपालेश्यावालेनिकै सर्वतें स्तोक अप्रमत्तसंयत है । तिनितें संख्यातगुणां प्रमत्तसंयत है । ऐसें अन्यगुणस्थानवाले पंचेंद्रियवत् है । शुक्ललेश्यावालेनिकै सर्वते स्तोक उपसर्वार्थ |वचसिद्धि शमश्रेणीवाले है । तिनितें संख्यातगुणां क्षपकश्रेणीवाले है । तिनित संख्यातगुणां सयोगकेवली है । तिनित संख्यातगुणां टीका अप्रमत्तसंयत है । तिनित संख्यातगुणां प्रमत्तसंयत है। तिनितें असंख्यातगुणां संयतासंयत है। तिनि” असंख्यातगुणां पा.१ सासादनसम्यग्दृष्टि है । तिनि” असंख्यातगुणां सम्यग्मिथ्यादृष्टि है । तिनि” असंख्यातगुणां मिथ्यादृष्टि है । तिनितें असंख्यातगुणां असंयतसम्यग्दृष्टि है ॥ भव्यके अनुवादकार भव्यनिके गुणस्थानवत् अल्पबहुत्व है। अभव्यनिके अल्पबहुत्व नाही है ॥ सम्यक्त्वके अनुवादकार क्षायिकसम्यग्दृष्टीनिविर्षे सर्वते स्तोक च्यारि उपशमश्रेणीवाले है । अन्य प्रमत्तसंयतनिताई गुणस्थानवत् है । तिनितें संयतासंयत संख्यातगुणां है । तिनितें असंख्यातगुणां असंयतसम्यग्दृष्टि है । क्षायोपशमिकसम्यग्दृष्टि है तिनिविर्षे सर्वते स्तोक अप्रमत्तसंयत है । तिनि” संख्यातगुणां प्रमत्तसंयत है । तिनि” असंख्यातगुणां संयतासंयत है । तिनितें असंख्यातगुणां असंयतसम्यग्दृष्टि है । औपशमिकसम्यग्दृष्टीनिविर्षे सर्वते स्तोक च्यारि उपशमश्रेणीवाले है । तिनि” संख्यातगुणां अप्रमत्तसंयत है । तिनितें संख्यातगुणां प्रमत्तसंयत है । तिनितें असंख्यातगुणां संयतासंयत है । तिनि” असंख्यातगुणां असंयतसम्यग्दृष्टि है। अवशेषनिकै अल्पबहुत्व नांही है। जाते विवक्षित एक एक गुणस्थानही है ॥ संज्ञीके अनुवादकरि संज्ञीनिकै चक्षुर्दर्शनवालेवत् है । असंज्ञीनिकै अल्पबहुत्व नाही है । दोऊ संशारहितनिकै | केवलज्ञानीवत् है ॥ आहारकके अनुवादकार आहारकनिकै काययोगीवत् है । अनाहारकनिकै सर्वते स्तोक सयोगकेवली है। तिनितें संख्यातगुणां अयोगकेवली है । तिनि” असंख्यातगुणां सासादनसम्यग्दृष्टि है। तिनि” असंख्यातगुणां असंयतसम्यग्दृष्टि है । तिनित अनंतगुणां मिथ्यादृष्टि है। ऐसे मिथ्यादृष्टि आदिनिकै गत्यादिकविर्षे मार्गणाकरि सो सामान्यकरि है। तहां सूक्ष्मभेद आगमते अविरोधकरि अंगीकार करनां ॥ ____ इहां सत् आदिका संक्षेप भावार्थ ऐसा जाननां- जो, सत् कहिये वस्तु है, ऐसा अस्तित्वका कहना । Dow .
SR No.010558
Book TitleSarvarthasiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherShrutbhandar va Granthprakashan Samiti Faltan
Publication Year
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size28 MB
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