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________________ सर्वार्थ कायके अनुवादकार स्थावरकायवि गुणस्थानभेद नाही, तातें अल्पबहुत्वका अभाव है। कायप्रति कहिये है, तहां से हा सर्वतें थोरा तेजस्कायिक हैं, तिनितें बहुत पृथिवीकायिक हैं, तिनितें बहुत अपकायिक हैं, तिनितें बहुत वातकायिक हैं। सर्वते अनंतगुणां वनस्पतिकायिक हैं । उसकायिकनिकै पंचेंद्रियवत् है। योगके अनुवादकार वचनमनयोगीनिकै पंचेंद्रियवत् अर काययोगीनिकै गुणस्थानवत् अल्पबहुत्व है ॥ व चसिद्धि वेदके अनुवादकार स्त्रीपुरुपवेदीनिकै पंचेंद्रियवत् है । नपुंसकवेदीनिकै अर वेदरहितनिकै गुणस्थानवत् अल्पबहुत्व है ॥ नि का टीका कपायके अनुवादकार क्रोधमानमायाकपायवालेनिकै पुरुषवेदवत् है । विशेप यहु जो मिथ्यादृष्टि अनंतगुणा है । लोभ पान कषायवालेनिकै दोय उपशमश्रेणीवाले तुल्यसंख्या हैं। अर क्षपकश्रेणीवाले तिनित संख्यातगुणां है। सूक्ष्मसांपराय शुद्धसंयत उपशमश्रेणीवाले विशेपकरि अधिक हैं । तिनितें सूक्ष्मसांपराय क्षपकश्रेणीवाले संख्यातगुणां है । अवशेपनिकै गुणस्थानवत् है ॥ ज्ञानके अनुवादकार मतिअज्ञान श्रुतअज्ञानवालेनिवि सर्वतें स्तोक सासादनसम्यग्दृष्टि है । तिनितें अनंतगुणां मिथ्यादृष्टि है । विभंगज्ञानिनिवि सर्वते थोरा सासादनसम्यग्दृष्टि है । तिनितै असंख्यातगुणां मिथ्याष्टि है। मतिश्रुतअवधि ज्ञानीनिवि सर्वते स्तोक च्यारि उपशमश्रेणीवाले है । तिनितें संख्यातगुणां क्षपकश्रेणीवाले है । तिनित संख्यातगुणां अप्रमत्तसंयत है । तिनितें संख्यातगुणां प्रमत्तसंयत है । तिनितै असंख्यातगुणां संयतासंयत है । तिनितें असंख्यातगुणां असंयतसम्यग्दृष्टि है । मनःपर्ययज्ञानिनिवि सर्वतें स्तोक च्यारि उपशमश्रेणीवाले है । तिनित संख्यातगुणां क्षपकश्रेणीवाले है तिनित संख्यातगुणां अप्रमत्तसंयत है । तिनितें संख्यातगुणां प्रमत्तसंयत है । केवलज्ञानीनिवि अयोगकेवलीनित संख्यातगुणां सयोगकेवली है ॥ | संयमके अनुवादकार सामायिकच्छेदोपस्थापनशुद्धसंयतनिवि दोऊं उपशमश्रेणीवाले तुल्यसंख्या है । तिनितें संख्यातगुणां क्षपकश्रेणीवाले है । तिनित संख्यातगुणां अप्रमत्तसंयत है तिनित संख्यातगुणां प्रमत्तसंयत है। परिहारविशुद्धिसंयतनिवि अप्रमत्तनितें संख्यातगुणां प्रमत्तसंयत है । सूक्ष्मसांपरायशुद्धसंयमीनिवि उपशमश्रेणीवालेनितें क्षपकश्रेणीवाले संख्यातगुणां है । यथाख्यातविहारशुद्धसंयतनिविपै उपशांतकपायनितें क्षीणकपायवाले संख्यातगुणां है । अयोगकेवली तित| नेही है। तिनितें संख्यातगुणां सयोगकेवली है। संयतासंयतनिवि गुणस्थान एकही है । तातें अल्पबहुत्व नाही । असंयत निवि4 सर्वतै स्तोक सासादनसम्यग्दृष्टि है । तिनित संख्यातगुणां सम्यग्मिथ्यादृष्टि है तिनितें असंयतसम्यग्दृष्टि संख्यात| गुणां है । तिनित अनंतगुणां मिथ्यादृष्टि है ॥
SR No.010558
Book TitleSarvarthasiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherShrutbhandar va Granthprakashan Samiti Faltan
Publication Year
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size28 MB
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