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________________ टीका पान क्षायोपशमिक सम्यक्त्व है । असंयत है सो औदयिकभावकरि है । संयतासंयत प्रमत्त अप्रमत्तसंयतनिकै क्षायोपशमिक । भाव है क्षायोपशमिकसम्यक्त्व है । औपशमिकसम्यक्त्वविर्षे असंयतसम्यग्दृष्टीकै औपशमिक भाव उपशमसम्यक्त्व है। असंयत है सो औदयिकभावकरि है। संयतासंयत प्रमत्त अप्रमत्तसंयतनिकै क्षायोपशमिक भाव है। सम्यक्त्व औपशमिक । है । च्यारि उपशमश्रेणीवालेनिकै औपशमिक भाव उपशमसम्यक्त्व है । सासादनसम्यग्दृष्टिनिकै पारिणामिक भाव है। सर्वार्थ व चसिद्धि की सम्यग्मिथ्यादृष्टिकै क्षायोपशमिक भाव है । मिथ्यादृष्टीकै औदयिक भाव है ॥ निका संज्ञीके अनुवादकार संज्ञीनिकै गुणस्थानवत् है । असंज्ञीनिकै औदयिक भाव है । दोऊ संज्ञारहितनिकै गुणस्थानवत् भाव है। आहारकके अनुवादकार आहारकनिकै अर अनाहारकनिकै गुणस्थानवत् भाव है । ऐसें भावका निरूपण मोहकर्मकी ५५ अपेक्षा उदाहरणरूप समाप्त भया ॥ । आगै अल्पबहुत्वका वर्णन कीजिये है । सो दोय प्रकार । सामान्यकरि, विशेषकरि । तहां प्रथमही सामान्यकरि तीन उपशमश्रेणीवाले सर्वते स्तोक कहिये थोरा है ॥ ते अपने अपने गुणस्थानकालविर्षे प्रवेशकार तुल्यसंख्या है । अर उपशांतकपायवाले भी तितनेही है । बहुरि तीन क्षपकश्रेणीवाले इनितें संख्यातगुणा है । अर क्षीणकपाय छद्मस्थ वीतराग भी तितनेही है । अर सयोगकेवली अयोगकेवली प्रवेशकार तुल्यसंख्या है । अर सयोगकेवली अपने कालवि भेले होय ते इनित संख्यातगुणां हैं । बहुरि अप्रमत्तसंयत संख्यातगुणां हैं । तिनित प्रमत्तसंयत संख्यातगुणां हैं । तिनितें संयतासंयत असंख्यातगुणां है । तिनितें सासादनसम्यग्दृष्टि असंख्यातगुणां हैं । तिनितें सम्यग्मिथ्यादृष्टि असंख्यातगुणां हैं । तिनितें असंयतसम्यग्दृष्टि असंख्यातगुणां हैं । तिनितें मिथ्यादृष्टि अनंतगुणां हैं। की विशेपकरि गतिके अनुवादकरि नरकगतिविर्षे सर्वपृथ्वीनिविर्षे नारकी जीव सर्वते स्तोक सासादनसम्यग्दृष्टि हैं। तिनि” संख्यातगुणां सम्यग्मिथ्यादृष्टि हैं । तिनितें असंख्यातगुणां असंयतसम्यग्दृष्टि हैं । तिनितें असंख्यातगुणां मिथ्यादृष्टि हैं। तिर्यचगतिविर्षे तिर्यच सर्वतै थोरा संयतासंयत हैं। अन्यकी संख्या गुणस्थानवत् है। मनुष्यगतिविर्षे मनुष्यनिकै उपशमश्रेणीवाले आदिविर्षे अर प्रमत्तसंयतनिताई गुणस्थानवत् है । तिनि” संख्यातगुणां संयतासंयत हैं । तिनितें सासादनसम्यग्दृष्टि संख्यातगुणां हैं । तिनित संख्यातगुणां सम्यग्मिथ्यादृष्टि हैं । तिनितें असंयतसम्यग्दृष्टि संख्यातगुणां ही हैं । देवगतिवि देवनिके नारकीवत् अल्पबहुत्व है ॥ इंद्रियके अनुवादकरि एकेंद्रिय विकलत्रयविर्षे गुणस्थानभेद नाही । तातें अल्पबहुत्वका अभाव है ॥ इंद्रियकी अपेक्षा कहिये । तहां पंचेंद्रिय आदि एकेंद्रियपर्यत उत्तरोत्तर बहुत्व है। पंचेंद्रियनिके गुणस्थानवत् है । विशेष यहु जो मिथ्यादृष्टि असंख्यातगुणेही है ॥
SR No.010558
Book TitleSarvarthasiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherShrutbhandar va Granthprakashan Samiti Faltan
Publication Year
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size28 MB
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