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________________ सर्वार्थ 12 मियान्यदृष्टिक औपशमिक शायोपशमसातमीपर्यंत मिथ्यादृष्टि सासानदाट आदि असंयतसम्यग्दृष्टिपर्यंतनिक । भाव है । पद्रियानावनिकै गुणस्थानवत् भाव हयतनिके गुण-विच निका पान विशेषकरि गतिके अनुवादकरि नरकगतिवि प्रथमपृथिवीवि नारकी मिथ्यादृष्टि आदि असंयतसम्यग्दृष्टिपर्यंतनिके AM गुणस्थानवत् भाव है। दूसरी पृथिवी आदि सातमीपर्यंत मिथ्यादृष्टि सासादन सम्यमिथ्यादृष्टीनिकै गुणस्थानवत् है । | असंयतसम्यग्दृष्टिकै औपशमिक क्षायोपशमिकभाव है। असंयत है सो औदयिकभावकार है । तिर्यचगतिवि4 तिर्यचनिकै | मिथ्यादृष्टि संयतासंयत पर्यंतनिकै गुणस्थानवत् भाव है। मनुष्यगतिवि मिथ्यादृष्टि आदि अयोगकेवलीपर्यंतनिके गुण वचसिद्धि । स्थानवत् भाव है । देवगतिविपैं देवनिकै मिथ्यादृष्टि आदि असंयतसम्यग्दृष्टिपर्यंतनिकै गुणस्थानवत् भाव है ॥ टीका इंद्रियके अनुवादकार एकेंद्रिय विकलत्रयनिकै औदयिक भाव है । पंचेंद्रियनिवि मिथ्यादृष्टि आदि अयोगकेवलीपर्यंत निकै गुणस्थानवत् भाव है ॥ कायके अनुवादकरि स्थावरकायिकनिकै औदयिक भाव है। त्रसकायिकनिकै गुणस्थानवत् भाव है ॥ योगके अनुवादकार कायवचनमनोयोगीनिकै मिथ्यादृष्टि आदि सयोगकेवलीपर्यतनिकै अर अयोगकेवलीनिकै गुणस्थानवत् भाव है ॥ वेदके अनुवादकरि स्त्रीपुरुपनपुंसकवेदीनिकै अर वेदरहितनिकै गुणस्थानवत् भाव है ॥ कपायानुवादकरि क्रोधमानमायालोभकपायवालेनिकै अर कपायरहितनिकै गुणस्थानवत् भाव है ॥ ज्ञानके अनुवादकरि मति अज्ञान श्रुत अज्ञान विभंगज्ञानवालेनिकै अर मतिश्रुत अवधि मनःपर्यय केवलज्ञानिनिकै गुणस्थानवत् भाव है। संयमके अनुवादकरि सर्वही संयतनिकै अर संयतासंयतनिकै अर असंयतनिकै गुणस्थानवत् भाव है ॥ दर्शनानुवादकरि चक्षुर्दर्शन-अचक्षुदर्शन-अवधिदर्शन-केवलदर्शनवालेनिकै गुणस्थानवत् भाव है ॥ लेश्याके अनुवादकरि छहू लेश्यावालेनिकै अर लेश्यारहितनिकै गुणस्थानवत् भाव है ॥ भव्यके अनुवादकरि भव्यनिकै मिथ्यादृष्टि आदि अयोगकेवलीपर्यंतनिकै गुणस्थानवत् भाव है । अभव्यनिकै पारिणामिक भाव है ॥ सम्यक्त्वके अनुवादकरि भायिकसम्यग्दृष्टिवि असंयतसम्यग्दृष्टीकै क्षायिकभाव तो क्षायिकसम्यक्त्व है । अर असंयतपणां है सो औदायिकभावकार है । संयतासंयत प्रमत्त अप्रमत्तसंयतनिकै क्षायोपशमिक भाव है। सम्यक्त्व क्षायिक है | सो आयिकभावकरि है । च्यारि उपशमश्रेणीवालेनिकै औपशमिक भाव है। सम्यक्त्व इहां क्षायिकभावकरि हो है । IPI अवशेषनिके गुणस्थानवत् भाव है । क्षायोपशमिक सम्यग्दृष्टीवि असंयतसम्यग्दृष्टीकै क्षायोपशमिक भाव है सो तौ ०००००००००००० Ma लेश्याक अनुवाद चखुर्दर्शन-अचक्षुशन अब संयतासंयतनिकै अर भव्यनिकै मिथ्यादृष्टि अश्यारहितनिकै गुणस्थानवरणस्थानवत् भाव है ॥
SR No.010558
Book TitleSarvarthasiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherShrutbhandar va Granthprakashan Samiti Faltan
Publication Year
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size28 MB
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