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व च
सर्वार्थ सिद्धि
पान
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अथवा दोय तीन आदि उत्कृष्ट चोवनताई हैं । बहुरि इनिका सर्वकालके भेले होय तव संख्यात हैं। एक गुणस्थानके २९९ । च्यारिनिके जोडिये तव ११९६ हाय । च्यारि क्षपक श्रेणीवाले बहुरि अयोगकेवली प्रवेशकरि एक दोय तीन : | आदि उत्कृष्ट एकसो आठताई अपनां अपनां कालके भेले होय तब संख्यात होय । एक गुणस्थानमें ५९८ । पांच गुणस्थानके जोडिये तब २९९० होय । सयोगकेवली प्रवेशकरि एक दोय तीन आदि उत्कृष्ट एकसो आठताई है । या गुणस्थानके भेले होय तब पृथक्त्व लाख होय है ते ८९८५०२ होय । ऐसें प्रमत्तसंयतते लगाय अयोगकेवलीपर्यत
निका टी का | सर्वसंयमी जोडिये तव नवकोडि तीन घाटि होय हैं । ८९९९९९९७ ॥ II बहार विशेपकार गतिके अनुवादकरि नरकगतिविपें पहली प्रथिवीवि नारकी जीव मिथ्यादृष्टि असंख्यात जगच्छ्रेणी
परिमाण हैं । सो जगत् प्रतरके असंख्यातवै भाग हैं । बहुरि दूसरी पृथिवीतें लगाय सातमीताई मिथ्यादृष्टि श्रेणीकै असंख्यातवै भाग परिमाण हैं । सो असंख्यातवां भाग असंख्यात कोडि योजनके प्रदेश होय तेते जानने । बहुरि सर्वही पृथिवीनिवि सासादनसम्यग्दृष्टि सम्यमिथ्यादृष्टि असंयतसम्यग्दृष्टि पल्योपमकै असंख्यातवै भाग परिमाण हैं । बहुरि तिर्यचगतिविर्षे तिर्यचजीव मिथ्यादृष्टि अनंतानंत हैं। सासादनसम्यग्दृष्टि आदि संयतासंयतताई भाग परिमाण हैं। मनुष्यगतिवि मनुष्य मिथ्यांदृष्टि श्रेणीकै असंख्यातवै भाग हैं । सो असंख्यातवा भाग असंख्यातकोडि योजनके प्रदेशमात्र जाननां । सासादनसम्यग्दृष्टि आदि संयतासंयतताई संख्यात हैं । ते सासादनवि बावन कोडि हैं । मिश्रवि एकसो च्यारि कोडि है । असंयत सातसैं कोडि हैं संयतासंयत तेरह कोडि हैं। बहुरि प्रमत्तसंयत । आदिकी संख्या सामान्योक्त कहिये गुणस्थाननिमें कही सो संख्या जाननी ॥
देवगतिवि देव मिथ्यादृष्टि असंख्यात श्रेणी परिमाण हैं । सो प्रतरके असंख्यातवै भाग हैं । सासादनसम्यग्दृष्टि सम्यमिथ्यादृष्टि असंयतसम्यग्दृष्टि पल्योपमके असंख्यातवै भागपरिमाण हैं ॥ ____ इंद्रियके अनुवादकरि एकेंद्रिय मिथ्यादृष्टि अनंतानंत हैं । वींद्रिय त्रींद्रिय चतुरिंद्रिय असंख्यात श्रेणीपरिमाण हैं । सो प्रतरके असंख्यातवै भाग हैं । पंचेंद्रियवि मिथ्यादृष्टि असंख्यात श्रेणीपरिमाण हैं । सो प्रतरकै असंख्यातवै भाग हैं। सासादनसम्यग्दृष्टि आदि अयोगकेवलीपर्यंत गुणस्थानवत् संख्या जाननी ॥ ___ कायके अनुवादकरि पृथिवीकायिक अप्कायिक तेजस्कायिक वायुकायिक असंख्यातलोक परिमाण हैं । वनस्पतिकायिक अनंतानंत हैं। त्रसकायिककी संख्या पंचेंद्रियवत् जाननी ॥ ___ योगका अनुवादकरि मनोयोगी वचनयोगी मिथ्यादृष्टि असंख्यातश्रेणीपरिमाण हैं । ते प्रतरकै असंख्यातवै भाग हैं ।