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________________ सर्वार्थ वच टीका काययोगीनिवि मिथ्यादृष्टि अनंतानंत हैं । तीनूं योगवाले सासादनसम्यग्दृष्टि आदि संयतासंयतताई तौ पल्यके असं-101 8 ख्यातवै भागपरिमाण हैं। प्रमत्तसंयत आदि सयोगकेवलीताई संख्यात हैं । अयोगकेवली गुणस्थानवत् संख्या ॥ वेदके अनुवादकार स्त्रीवेद पुरुपवेदवाले मिथ्यादृष्टि असंख्यातश्रेणी परिमाण हैं । प्रतरकै असंख्यातवै भाग हैं। .. नपुंसकवेदी मिथ्यादृष्टि अनंतानंत है । बहुरि स्त्रीवेदी नपुंसकवेदी सासादनसम्यग्दृष्टि आदि संयतासंयतताई गुणस्थानवत् सिद्धि संख्या है । प्रमत्तसयत आदि अनिवृत्तिवादरसांपरायताई संख्यात हैं। पुरुपवेदी सासादनसम्यग्दृष्टि संयतासंयतताई निका गुणस्थानवत् संख्या है। प्रभत्तसंयत आदि अनिवृत्तिवादरसांपरायताई गुणस्थानवत् संख्या है। वेदरहित अनिवृत्तिवाद- पान रसांपराय आदि अयोगकेवलीताई सामान्योक्त कहिये गुणस्थानवत् संख्या है। कपायके अनुवादकरि क्रोधमानमायावि मिथ्यादष्टि आदि संयतासंयतताई गुणस्थानवत् संख्या है। प्रमत्तसंयत आदि अनिवृत्तिवादरसांपरायतार्ड संख्यात हैं । लोभकपायवालेका पहलै कह्या सोही अनुक्रम है । विशेप यह, जो, सूक्ष्मसांपरायसंयतका गुणस्थानवत् संख्या है । कपायरहित उपशांतकपाय आदि अयोगकेवलीताई गुणस्थानवत् संख्या है ॥ ज्ञानक अनुवादकार मति- अज्ञान श्रुत-अज्ञानवाले मिथ्या दृष्टि सासादनसम्यग्दृष्टि आदि गुणस्थानवत् संख्या है। विभंगज्ञानी मिथ्यादृष्टि असंख्यातश्रेणीपरिमाण हैं। ते प्रतरके असंख्यातवै भाग हैं। सासादनसम्यग्दृष्टि पल्योपमकै असंख्यातवै भाग हैं । मतिश्रुतज्ञानी असंयतसम्यग्दृष्टि आदि क्षीणकपायताई गुणस्थानवत् संख्या है । अवधिज्ञानी असंयतसमग्दृष्टि आदि संयतासंयतताई गुणस्थानवत् संख्या है। प्रमत्तसंयत आदि क्षीणकपायताई संख्यात हैं । मनःपर्ययज्ञानी प्रमत्तसंयत आदि क्षीणकपायतार्ड संख्यात हैं । केवलज्ञानी अयोगी सयोगी गुणस्थानवत् संख्या है ॥ ___संयमके अनुवादकार सामायिकच्छेदोपस्थापनाशुद्धिसंयंत प्रमत्तआदि अनिवृत्तिवादरसांपरायताई गुणस्थानवत् संख्या है । परिहारविशुद्धिसयत प्रमत्त अप्रमत्त संख्यात हैं । सूक्ष्मसांपरायशुद्धिसंयत यथाख्यात विहारशुद्धिसयत संयातासंयत असंयतकी गुणस्थानवत् संख्या है ॥ ___ दर्शनके अनुवादकरि चक्षुर्दर्शनवाले मिथ्यादृष्टि असंख्यातश्रेणीपरिमाण हैं । ते प्रतरकै असंख्यातवै भाग हैं । अचक्षुर्दर्शनवाले मिथ्यादृष्टि अनंतानंत हैं । दोऊही सासादनसम्यग्दृष्टि आदि क्षीणकपायताई सामान्योक्त काहिये गुण-18 स्थानवत् है । अवधिदर्शनवाले अवधिज्ञानिवत् हैं । केवलदर्शनवाले केवलज्ञानीवत् हैं ॥ - लेश्याके अनुवादकरि कृष्ण-नील-कापोतलेश्यावाले मिथ्याइष्टि आदि असंयतसम्यग्दृष्टिताई गुणस्थानवत् संख्या है। पीतपद्मलेश्यावाले मिथ्यादृष्टि आदि संयतासंयतताई स्त्रीवेदवत् है। प्रमत्त अप्रमत्त संयत संख्यात हैं। शुक्ललेश्यावाले
SR No.010558
Book TitleSarvarthasiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherShrutbhandar va Granthprakashan Samiti Faltan
Publication Year
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size28 MB
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