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सर्वार्थ
सिद्धि दो का
अ. १०
अपेक्षा चारित्रविनाही सिद्ध भये कहिये । तहां अल्पबहुत्वे नाहीं । बहुरि भूतनयापेक्षया । अनतर चारित्र यथाख्यातही तें :सिद्ध होय हैं। तहां भी अल्पबहुत्व नाहीं । बहुरि अंतरसहित चारित्र की अपेक्षा पंचचारित्रत भये अल्प हैं । तिनतैं संख्यातगुणा च्यारित भये हैं । बहुरि प्रत्येकबुद्धनितें भय अल्प है । तिनतें संख्यातगुणा वोधितबुद्ध भये सिद्ध हैं । बहुरि प्रज्ञानकरि प्रत्युत्पन्ननयकी अपेक्षा तौ केवलज्ञानतैं सिद्ध भये तिनमें अल्पबहुत्व नाहीं । बहुरि भूतनयकीअपेक्षा दोय ज्ञान सिद्ध भये अल्प हैं, तिनत संख्यातगुणा च्यारि ज्ञानतें अये सिद्ध | बहुरि तिनतें संख्यातगुणा तीन ज्ञानतें भये सिद्ध हैं । बहुरि अवगाहनाकार जघन्य अवगाहनात सिद्ध भये सर्वतें थोरे हैं । तिनतें संख्यातगुणा उत्कृष्टअवगाहना भये सिद्ध हैं । तिनतें संख्यातगुणा मध्य अवगाहना भये सिद्ध हैं । बहुरि संख्याविषै एकसमय में उत्कृष्टपणे एकसो आठ सिद्ध होय हैं । ते तो सर्व थोरे हैं । तिनतें अनंतगुणा पचासताईंकी संख्यातै भये सिद्ध हैं । तिनतें असंख्यातगुणा गुणचासतें लगाय पचीसकी संख्याताई भये सिद्ध हैं । बहुरि तिनतें संख्यातगुणे चोईसतें लगाय एकताईकी संख्या भये सिद्ध हैं । ऐसें जानना । इहांताई टीकाका व्याख्यान
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ऐसें तत्वार्थका अधिगम जातें ऐसा जो मोक्षशास्त्र ताविषै दशमां अध्याय सम्पूर्ण भया ॥
स्वर्गापवर्गसुखमाप्तुमनोभिरायें - | जैनेन्द्रशासनवरामृतसारभूता ॥ सर्वार्थसिध्दिरिति सद्भिरुपात्तनामा । तत्वार्थवृचिरनिशं मनसा प्रधार्या ॥ १ ॥
याका अर्थ — स्वर्गमोक्षके पावनेकूं है मन जिनका ऐसे आर्य कहिये महंत पुरुष, तिनकारी यह तत्वार्थकी वृत्ति निरंतर मनकरि धारनेयोग्य है । कैसा यह ! जिनेंद्रका शासन कहिये मत आज्ञा मार्ग, सोही भया उत्तम अमृत ताका सारभूत है । बहुरि कैसी है ? सर्वार्थसिद्धि ऐसा सत्पुरुषनिकरि पाया है नाम जानें ॥ १ ॥
तत्वार्थवृत्तिमुदितां विदितार्थतत्वाः । श्रुण्वन्ति ये परिपठन्ति सुधर्मभक्त्या ॥ हस्ते कृतं परमसिद्धिसुखामृतं तै । र्मत्यमरेश्वरसुखेषु किमस्ति वाच्यम् ॥ २ ॥
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याका अर्थ — ये पुरुष यह कही जो तत्वार्थवृत्ति ताहि भले प्रकार धर्मकी भक्तितें सुण हैं । बहुरि नीकेँ पढ़ें हैं,
वच
निका
पान
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