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ते जान्या है तत्वार्थका यथार्थस्वरूप जिननें ऐसे भये संते तिनने परमसिद्धि जो मोक्ष ताका स्वरूप अमृत सो हस्त- 11 १ वि किया । अन्य जे चक्रवर्तिपद इन्द्रपदके सुखनिवि कछु कहनेयोग्य है कहा ! कछ भी नाहीं है ॥ २ ॥
निका
टीका
पान
अ.१०
येनेदमप्रतिहतं सकलार्थतत्त्व-। मुद्योतितं विमलकेवललोचनेन ॥ रावार्थसिदि
भक्त्या तमद्भुतगुणं प्रणमामि वीर- । मारान्नतामरगणार्चितपादपीठम् ॥ ३॥ ___ याका अर्थ- में जु हूं टीकाकार सो तं कहिसो वीर कहिये श्रीवर्धमान अंतिमतीर्थकर परमदेव ताहि भक्तिकार प्रणाम ||४०५ १ करो हौते कौन ? जिननें यऊ निर्बाध सकलपदार्थका स्वरूप यथार्थ कह्या प्रगट किया। से
केवलज्ञान हैं नेत्र जिनके । भावार्थ साक्षात् देखिकरि कहे हैं। बहुरि कैसे हैं ? अद्भुत आश्चर्यकारी हैं गुण जिनमें । भावार्थ- अतिशयकार सहित हैं । बहुरि कैसे है ? निकट आयकार नमे जे अमर कहिये देव तिनके गण कहिये समूह तिनकार पूजित है सिंहासन जिनका । भावार्थ- सर्व देवनिके देव हैं ।
आगे तत्वार्थवृत्ति सर्वार्थसिध्दि है नाम जाका तिसविर्षे तत्वार्थका दशमां . अध्याय समाप्त भया ॥ याका तात्पर्य तत्वार्थवार्तिकवि कह्या है सो लिखिये हैंऐसे निसर्ग अधिगमवि एकतै उपज्या जो तत्वार्थश्रद्धानस्वरूप सम्यग्दर्शन शंकादिअतीचारनिकार रहित संवेग अनुकंपा आस्तिक्यकरि जाका प्रगट होना ऐसा विशुद्ध ताहि अंगीकारकार, बहुरि तिसहीकी प्राप्तिकार विशुद्ध भया जो सम्यग्ज्ञान ताहि अंगीकारकरि, बहुरि नामआदि निक्षेप प्रत्यक्षप्रमाण निर्देश आदि सत् संख्या आदि अनुयोग नैगमादिनय इत्यादिक जे तत्वार्थके जाननेके उपाय तिनकार जीवनिके पारिणामिक औदयिक औपशमिक क्षायिक क्षायोपशमिक जे भाव ते स्वतत्व हैं, तिनकू जाणिकरि, बहुरि जीवके भोगके साधन जे अचेतनपदार्थ तिनके उत्पत्तिविनाशस्वभावके जाननेते तिनतें विरक्त तृप्णारहित हूवा संता तीनि गुप्ति पांच समिति दशलक्षण धर्मके आचरणतें बहार तिनका फल देखनेते मोक्षकी प्राप्तिके यतनके अर्थि बढाया है श्रद्धान अर संवेग जानें, बहुरि भावनाकार प्रगट भया है अपना का स्वरूप जाकै, बहुरि अनुप्रेक्षाके चितवनकार दृढ किया है परद्रव्यका त्याग जानें, बहार संवररूप भया है आत्मा जाका, ।