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सर्वार्थ
सिद्धि टीका
अ. १०
॥ तदनन्तरमूर्ध्वं गच्छत्यालोकान्तात् ॥ ५ ॥ याका अर्थ -- सर्वकर्मका अभाव भये पीछे जीव ऊर्ध्वगमन करे हैं, सो लोकके अंतताई जाय है । बहुरि इहां तदनंतर कहिये ताके अनंतर, सो कौन ? सर्वकर्मका अभाव होना ताके अनंतर । बहुरि इहां आलोकान्तात् में आङ् उपसर्ग है सो अभिविधिअर्थमें है । तातें ऐसा अर्थ भया, जो, लोकके अंतताई गमन है, आगे अलोक में नाहीं है । यातें ऐसा भी जानिये, जो, मुक्त होय तथा तिष्ठै भी नाहीं है बहुरि अन्यदिशाकूं भी न जाय है । आगे पूछे है, जो, यह ऊर्ध्वगमनहेतुके कहे विना कैसें निश्चय करिये । ऐसें पूछें ताके निश्चय करनेकूं हेतु कहै हैं
॥
पूर्वप्रयोगादसङ्गत्वाद्वन्धच्छेदात्तथागतिपरिणामाच्च ॥ ६ ॥
याका अर्थ - पूर्वके प्रयोगत असंगपणेर्ते बंधके छेदतैं तैसाही गतिपरिणामतें इन च्यारि हेतुन ऊर्ध्वगमन निश्चय करना । आगें कहैं हैं, हेतुका अर्थ पुष्ट भी है तो दृष्टांत अरु समर्थविना साध्य के साधनकूं समर्थ नाहीं होय है । ता वांछित साधनेकूं दृष्टांत कहिये हैं |
आविध्दकुलालचक्रवव्यपगत लेपाला बुदेरण्डबीजवदग्निशिखावच्च ॥ ७ ॥
याका अर्थ - पूर्वै हेतु कह्या तिनके ए च्यारि दृष्टांत है । फिराये कुम्हारके चाककी ज्यौं लेपतैं रहित भये तूंबीक - ज्यौं एरंडके वीजके ज्यौं अग्निकी शिखाकी ज्यों ऐसें च्यारि दृष्टांतनिकार ऊर्ध्वगमन जानना । पहले सूत्रमें कहे जे च्यारि हेतु अर इस सूत्रमें कहे जे च्यारि दृष्टांत तिनका यथासंख्य संबंध करना । सोही कहिये है । जैसे कुम्हारके प्रयोग भया जो हस्तका अरु दंडका अर चाकका संयोग, तिसकरि भया जो चाकका फिरना, सो कुम्हार फिरावता रह गया तो पहले प्रयोग जहातांई वाके फिरनेका संस्कार न मिटै, तहांतांई फिरवाही करें । ऐसाही संसारविषै तिष्ठता जो जीव तानें मुक्तिकी प्राप्तिके अर्थ बहुतवार परिणाम चितवन अभ्यासकरि रह्या था सो मुक्ति भये पीछे तिस अभ्यासका अभाव भया, तौ पहले अभ्यासपूर्वक मुक्तजीवकै गमन निश्चय कीजिये है ॥
बहार जैसे मृत्तिकाका लेपतें तूंबा भन्या होय उतरि जलविषै पड्या पीछें जलके संबंध माटी जाय तब हलका होय जलके ऊपर आय जाय, तैसें कर्मके भारकरि दव्या परवश भया आत्मा तिस कर्मके संबंध संसारविषै नियमकरि
वच
निका
पान
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