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________________ सर्वार्थ-२ तासादनादिकवि नाहीं है ॥ अगिले गुणस्थाननिविर्षे तिनका सवर होय है । ते प्रकृति कौन सो कहिये हैं । मिथ्यात्व, नपुंसकवेद, नरकआयु, BI नरकगति, एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय ए च्यारि जाति, हुंडकसंस्थान, असंप्राप्तामृपाटिका संहनन, २ नरकगत्यानुपूर्व्य, आतप, स्थावर, सूक्ष्म, साधारणशरीर, अपर्याप्त इन सोलह प्रकृतीका संवर भया । इनका आश्रव || सिदि IRI बहुरिं' असंयम तीनि प्रकार है अनंतानुबंधीका उदयकृत, अप्रत्याख्यानावरणका उदयकृत, प्रत्याख्यानावरणका उदयकृत ।। निका टी का 8/ सो इस असमयके निमित्ततें जिन प्रकृतिनिका आश्रव होय था, सो तिस असंयमके अभावते तिनका संवर होय है । । पान 18 सो कहिये हैं । निद्रानिद्रा, प्रचलाप्रचला, स्त्यानगृद्धि अनंतानुबंधी क्रोध मान माया लोभ ए च्यारि, लीवेद, तिर्यंचआयु,81 ३२९ तिर्यचगति, च्यारि मध्यके संस्थान, च्यारि मध्यके संहनन, तिर्यचगतिप्रायोग्यानुपूर्व्य, उद्योत, अप्रशस्तविहायोगति, दुर्भग, RI दुःस्वर, अनादेय, नीवगोत्र इन पचीस प्रकृतिनिका तौ अनंतानुवंधीकषायके उदयकृत असंयमकू प्रधानकरि आश्रय होय था, एकेन्द्रियकू आदि दे सासादनसम्यग्दृष्टीपर्यंत सर्वही जीव इनका बंध करै थे, सो तिस अनंतानुबंधी असंयमका अभाव हा एकेन्द्रिया आदि नीचगोत्र इन पचीस प्रकृतिनिकायके संहनन, तिर्यचगतिप्रायान्यामाया लोभ र च्यारि, सावदार होय है। पान ह, बहुरि अप्रत्याख्याना वगणस्थाननिविर्षे तिनका संवरन इनका बंध करै थे, सीतामसंयम प्रधानकरि आश्रय दुर्भग, नि . मनुष्यगति, औदारिकशरीर, असा जो असंयम ताके निमित्तते । हा अभावते नि एकन्द्रियतें लगाय असं गोपांग, वज्रपभनारा अप्रत्याख्यानावरण क्रोध Ma आयुका बंध नाहीत आदि गुणस्थानावर जीव वंध कर थे, म मनुष्यगतिप्रायोग्यानुष माया लोभ, | ATRA P बहार अप्रत्याख्यानावरणके उदयकार भया जो असंयम ताके निमित्ततै अप्रत्याख्यानावरण क्रोध मान माया लोभ, मनुष्यआयु, मनुष्यगति, औदारिकशरीर, औदारिकअंगोपांग, वज्रवृषभनाराचसंहनन, मनुष्यगतिप्रायोग्यानुपूर्व्य इन दशप्रकृतिनिका आश्रव एकेन्द्रियतें लगाय असंयतसम्यग्दृष्टीताई जीव बंध करै थे, सो तिस अप्रत्याख्यानावरणकृत संयमके अभावते, तिसते उपरिके देशसंयत आदि गुणस्थानवि तिनका संवर होय है । बहुरि सम्यग्मिथ्यात्व तीसरा गुणस्थानविर्षे आयुका बंध नाहीं होय है । बहुरि प्रत्याख्यानावरणकषायके उदयकार भया जो असंयम ताके होते प्रत्याख्यानावरण गुणस्थानवाले जीवनिताई बंध करनेवाले थे सो तिस असंयमका अभाव भये तिनका संवर होय । अगिले प्रमत्तसयतआदि गुणस्थानांनांवे तिनका बंध नाहीं हैं । बहुारे प्रमादकार सहित जीवकै असातावेदनीय अरति शोक अस्थिर अशुभ, अयशःकीर्ति ए छह प्रमादके निमित्ततें बंध होय थे, सो प्रमादका अभाव भये तिनका संवर होय है । अप्रमत्तआदि गुणस्थाननिमें तिनका बंध नाहीं होय है ॥ बहुरि, देवायुका भी बंध प्रमत्तवाला करै है । अर अप्रमत्त भी ताके निकटवर्ती है, तातें ताकै भी बंध हो है। आगें || अपूर्वकरणआदिविष ताका भी बंध नाहीं हो है । बहुरि जिस कर्मका आश्रव कपाय होर्तेही होय है, तिनका प्रमादादिकके । का अभावहीत अभाव नाही, होय है । जाते. जे...कपाय . प्रमादादिभावकरि रहित तीव्र मध्य जघन्य भावकरि ||
SR No.010558
Book TitleSarvarthasiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherShrutbhandar va Granthprakashan Samiti Faltan
Publication Year
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size28 MB
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