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________________ HEA 11 हीन अनुभव बंधै है । सो ऐसे कारणके वशते प्राप्त भया जो अनुभव सो दोयप्रकार प्रवते है, स्वमुख कार का बहुरि परमुखकार । तहां मूलप्रकृतिके जे आठ कर्म तिनका तो अनुभव स्वमुखहीकरि प्रवत है । अपना अपना बंधके । अनुसार उदय आवै है। अन्यकर्मका अन्यकर्मरूप होय उदय आवै नाहीं । बहुरि उत्तरप्रकृतिनिका जे तुल्यजातिकर्म होय सनार्थ तिनका परमुखकार भी अनुभव होय है। तिनमें आयुकर्मके भेदनिकें तौ परमुखकार उदय नाही, जो आयु बंधै ताहीका सिदि | उदय होय । बहुरि दर्शनमोह अर चारित्रमोहके परस्पर उलटना नाहीं है । जो बांधै सोही उदय आवै । सोही कहिये टीका है । नरकआयु तौ तिर्यंचआयु होय उदय आवै नाहीं । मनुष्यआयु नरकतिर्यचरूप होय उदय आवै नाहीं ऐसैं । बहुरि दर्शनमोह तौ चारित्रमोहरूप होय उदय आवै नाहीं अर चारित्रमोह दर्शनमोहरूप होय उदय आवै नाहीं । आगे शिष्य कहै है, जो, पूर्व संचय किया जो नानाप्रकार कर्म, ताका विपाक सो अनुभव है, सो यह तो हमनें अंगीकार किया मान्या, परंतु यह न जानें है- यह अनुभव प्रसंख्यात कहिये जो प्रकृतिगणनामें आई तिसस्वरूपही है कि अप्रसंख्यात कहिये किछु और भांति है ? ऐसे पू ते आचार्य कहै हैं, प्रसंख्यातही हैं, जो, प्रकृतिगणनामें आई तिसरूपही उदय आये भोगिये है। जातें ऐसा है ऐसे सूत्र कहै हैं ॥ स यथानाम ॥ २२॥ याका अर्थ-- जो प्रकृतिमान है तैसाही ताका अनुभव है। तहा ज्ञानावरणका फल ज्ञानका अभाव है, शक्तिकी व्यक्ति न होना है । दर्शनावरणका फल दर्शनशक्तिकी व्यक्ति न होना है । ऐसेंही जैसा जाका नाम है तैसाही अर्थरूप अनुभव सर्वकर्मप्रकृतिनिका भेदनिसहित प्रतीति, ल्यावना ॥ आगें शिष्य कहै है, जो कर्मका विपाक सो अनुभव कह्या, तहां कर्म भोगे पीछे आभूपणकी ज्यों लग्या रहै है, कि भोगै पीछे साररहित होय गिरि पडै है झडि जाय है ? ऐसे पूछ सूत्र कहै है । ततश्च निर्जरा ॥ २३ ॥ याका अर्थ-- तिस अनुभवपीछे निर्जरा ही है। भोगेपीछे झडि जाय है । आत्माकू दुःख सुख देकरि अर पूर्वस्थितिके क्षयतें फेरि अवस्थान रहै नाहीं । तातें कर्मकी निवृत्ति ही होय है । जैसें आहार खाय सो पचिकर झडिही | जाय, तैसें झडि जाय, याहीकू निर्जरा कहिये । सो यह दोयप्रकार है, सविपाकतें उपजी आवेपाकतें उपजी। तहां च्यारि हैं गति
SR No.010558
Book TitleSarvarthasiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherShrutbhandar va Granthprakashan Samiti Faltan
Publication Year
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size28 MB
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