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सा . सिद्धि
निका
पान
जामें बहुरि अनेक जातिके विशेषनिकरि भन्या भ्रमणरूप ऐसा जो संसाररूप समुद्र तावि4 घणे कालतें भ्रमता जो यह प्राणी पताकै शुभअशुभकर्म अनुक्रमकरि परिपाककू प्राप्त होय स्थिति पूरी कार अनुभव कहिये भोगनेका जो उदयावलीरूप ।
नाला ताकेवि प्राप्त होय अपना फलकू देय झडै है, सो तौ सविपाकनिर्जरा है । बहुरि जो कर्म स्थिति पूरी करि | अपना उदयकालकू न प्राप्त भया अर तपश्चरण आदि उपचारि क्रियाके विशेषनिकी सामर्थ्यते विना उदय आयाहीत
जोरीतें उदीरणा करि उदयावलीमें लेकरि वेदना भोगना “ जैसे आम्र तथा फनसका फल पालमें देकर शीघ्र पचावै वचटीका तैसें पचाय लेना ” सो अविपाकनिर्जरा है । बहुरि सूत्रमें चशब्द है सो निर्जराका अन्य भी निमित्त है ऐसा जनावनेके । अर्थ है । आगे कहेंगे जो तपसा निर्जरा ऐसा सूत्र सो अनुभवतें निर्जरा होय है बहुरि तपते भी होय है ऐसा जनाया है।
३२३ इहां पूछे है, कि, इस अध्यायमें निर्जराका कथनका कहा प्रयोजन ? संवरके पीछे निर्जरा कह्या चाहिये । जातें संवरके पीछे याका नाम है तैसेंही कहना । ताका समाधान, यह लघुकरणका प्रयोजन है, जो, संवरके पीछे या कहते
तौ तहां भी · विपाकोऽनुभवः । ऐसा फेरि कहना होता, तातें इहां कहनेमें फेरि नाही कहना होय सो इहां विशेष १ कहिये है । ते कर्मप्रकृति दोयप्रकार हैं, घातप्रकृति अघातप्रकृति । तहां ज्ञानावरण दर्शनावरण मोहनीय अंतराय ए तो
घातिकर्म हैं । अर वेदनीय नाम आयु गोत्र ए अघातिकर्म हैं । बहुरि घातिकर्मकी प्रकृति दोयप्रकार है, सर्वघाति देशधाति । इहां केवलज्ञानावरण निद्रा निद्रानिद्रा प्रचला प्रचलाप्रचला स्त्यानगृद्धि केवलदर्शनावरण दर्शनमोह चारित्रमोहकी संज्वलननोकपाय विना बारहकषाय ऐसें बंधकीअपेक्षा वीसप्रकृति सर्वघाति हैं । बहुरि ज्ञानावरण च्यारि दर्शनावरणकी तीनि अंतराय पांच संज्वलननोकषाय तेरा ऐसें पचीस देशघाति हैं । यह भी बंधकीअपेक्षा जाननी । बहुरि अन्यविशेष है सो कहिये है, शरीर ५ बंधन ५ संघात ५ संस्थान ६ संहनन ६ अंगोपांग ३ स्पर्श ८ रस ५ गंध २ वर्ण ५ प्रत्येक साधारण २ स्थिर अस्थिर २ शुभअशुभ २ अगुरुलघु १ उपघात १ परघात १ उद्योत १ निर्माण १ ए बासठि प्रकृति | तौ पुद्गलविपाककी कहिये पुद्गलहीकू रस दे हैं, शरीरसंबंधी जाननी । बहुरि आनुपूर्व्य ४ क्षेत्रविपाककी कहिये जीवके प्रदेशनिके
आकाररूप विपाक इनकै हैं । बहुरि आयु ४ भवविपाककी कहिये इनका भवसाधारणमात्र फल है । अब शेपप्रकृति जीवविपाककी कहिये । ते जीवके उपयोग आदि शक्तिक्षं विपाक दे हैं । ज्ञानावरण ५ दर्शनावरण ९ अंतराय ५ मोहनीय २८ ऐसे घातिकर्मकी तौ ४७ । बहुरि वेदनीय २ गोत्रकर्मकी २ नामकी २७ तिनके नाम गति ४, जाति ५, बिहायोगति २, बसस्थावर २, सूक्ष्मबादर २, पर्याप्तअपर्याप्त २, सुस्वरदुःस्वर २, सुभगदुर्भग २, आदेय अनादेय २, यश-कीर्ति अयश-कीर्ति २, स्वासोत्स्वास १, तीर्थकर १, ऐसें सब मिलि ७८ जीवविपाककी प्रकृति हैं । ए सत्तरकी अपेक्षा एकसो अठतालीस प्रकृति जाननी ॥