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पान ३२१
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॥ अपरा द्वादशमुहूर्ता वेदनीयस्य ॥ १८ ॥ याका अर्थ-- वेदनीयकर्मकी जघन्यस्थिति वारह मुहूर्तकी है । इहां अपरा ऐसा जघन्यका नाम लेणा ॥ माथमिदिरा
॥ नामगोत्रयोरष्टौ ॥ १९ ॥ टिकामा
याका अर्थ- नामकर्म गोत्रकर्म इन दोऊनिकी जघन्यस्थिति आठ मुहूर्त की है। इहां अपरास्थिति अन्तर्महर्त इन | शब्दनिकी अनुवृत्ति है। आगे, पांच कर्म न्यारे राखे थे, तिनकी जघन्यस्थिति कहने● सूत्र कहै हैं
॥ शेषाणामन्तर्मुहर्ता ॥२०॥ याका अर्थ- शेप कहिये बाकीके पांच कर्म ज्ञानावरण दर्शनावरण अंतराय मोहनीय आयु इनकी जघन्यस्थिति 12 अंतर्मुहर्तकी है। तहां ज्ञानावरण दर्शनावरण अंतराय इन तीनिकी तो जघन्यस्थिति सूक्ष्मसांपरायगुणस्थानवाले
है । बहुरि मोहनीयकर्मकी जघन्यस्थिति अनुवृत्ति बादरसांपराय कहिये नवमां गुणस्थानवालेकै बंधै है । बहुरि आयुकर्मकी जघन्य संख्यातवर्पका जिनका आयु ऐसे कर्मभूमि मनुष्य तिर्यचनिकें बंधै है ॥
आगें पूछ है, जो, दोऊ प्रकारकी स्थिति ज्ञानावरण आदि कर्मनिकी कही अब इनका अनुभवका कहा लक्षण है सो कही । ऐसें पूछे सूत्र कहै हैं ।
कककककककककर
॥ विपाकोऽनुभवः ॥ २१ ॥ ___याका अर्थ--- कर्मप्रकृति पचकर उदय आवै ताका रस अनुभवमें आवै सो अनुभव कहिये । इहां विपाकके दोय अर्थ हैं, एक तो विशिष्ट पाक होय सो विपाक कहिये, दूजा नाना पाक होय सो विपाक कहिये । तहां पूर्व कहे जे तीत्र २ मंद कपायरूप भावाश्रवके विशेष तिनतें कर्मनिके पाक रसमें विशेप होय, सो तो विशिष्ट पाक है। वहरि द्रव्यक्षेत्र २
काल भव भावके निमित्तके भेदतै भया जो नानाप्रकारपणा जामें ऐसा जो कर्मका पचना, सो विपाक है ।। तहां इनमें शुभपरिणामनिके प्रकर्पते तो शुभप्रकृतिका उत्कृष्ट अनुभव बंधै है । अर अशुभप्रकृतिनिका हीन अनुभव बंधै है। बहुरि अशुभपरिणामनिके प्रकर्ष होनेते अशुभप्रकृतिनिका उत्कष्ट अनुभव बंधै है। अर शुभप्रकृतिका