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तीन मंद अपेक्षा च्यारि दृष्टांत हैं। तीव्रतर तो पापाणके स्तंभसारिखा होय, जो खंड तो होय परंतु नमना कठिन ।। | बझार तीव्र अस्थिसारिखा होय, सो कोई कारणविशेषत केतक काल पीछे नमि जाय । वहार मंद काष्ठसारिखा होय, जो
नमनेका कारण मिलै थोरेही कालमें नमि जाय । बहरि मंदतर वेलिके तंतुसारिखे होय, तत्काल नमि जाय । सार्य ऐसे मानका विशेप है ॥
वचसिद्धि
निका का वहरि मायाका विशेप, जो पर ठगनेके आर्थि परतें छिपाय मन वचन कायका कुटिलपणाका विचार, सो माया टी का
पान अ.८ Bा है । याके भी तीवमंदके च्यारि दृष्टांत हैं । तहां तीव्रतर बांसके विडाके जडसारिखी जाका परकू ज्ञान होय सकै नाहीं
अर पैला ठिगाय जाय सो बहुत कालताईं प्रवते कहि न मिटें । बहुरि तीव्र मीठेके सींगसारिखी, जाकी वक्रता थोडी, | थोडे कालमें मिटि जाय । बहुरि मंद गोमूत्रकसारिखी, जाके दोय च्यारि मोडेरूप वक्रता, सो अल्पकालमें मिटि जाय । बहार मंदतर खुरवा तथा लिखनेकी कलमसारिखी, जाकी एकमोडारूप वक्रता, तुरत मिटि जाय । ऐसें मायाका विशेष है ॥
बहुरि लोभका विशेप, तहां अपने उपकारका कारण जो द्रव्य आदिक वस्तु ताकी वांछा अभिप्रायमें रहै सो लोभ है, याके भी तीव्र मंदके च्यारि दृष्टांत हैं । तहां तीव्रतर किरिमिजी रंग सारिखा बहुतकालमें भी जाका मिटना कठिन । बहुरि तीव्र काजलके रंगसारिखा, जो थोडेही कालमें मिटि जाय । बहुरि मंद कर्दम लग्या हूवा सारिखा, सो अल्पकालमें | जाका रंग उतरि जाय । बहुरि मंदतर हलदके रंगसारिखा, तुरत उडि जाय । ऐसा लोभका विशेष है । ऐसें दर्शनमोहकी
तीनि प्रकृति, च्यारि मोहनीयकी, पचीस कपायरूपप्रकृति ए अठाईस कहीं ॥ ___आर्गे आयुकर्मके उत्तरप्रकृतिके निर्णयके अर्थि सूत्र कहै हैं
॥ नारकतैर्यग्योनमानुषदैवानि ॥ १० ॥ याका अर्थ-- नारक तैर्यग्योन मानुष दैव ए च्यारि प्रकृति आयुकर्मकी हैं । तहां नरकआदिविर्यै भवके संबंधकरि आयुका नाम किया है। जो नरकवि उपजनेकू कारण कर्म, सो - नारकआयु है । जो तिर्यंचयोनिवि उपजनेकू कारण कर्म, सो तैर्यग्योन है । जो मनुष्यविष उपजनेकू कारण कर्म, सो मानुष है । जो देववि उपजने... कारण कर्म, सो दैव है। इहां भावार्थ ऐसा, जो, जिस पर्यायमें यह जीव उपजै, तिसविर्षे जीवना मरना इस आयुके आधीन है। तिस पर्यायसंबंधी दुःख तथा सुख आयुपर्यंत भोगवै है॥
आर्गे याके अनंतर कह्या जो नामकर्म ताकी उत्तरप्रकृतिके निर्णयके अर्थि सूत्र कहै हैं--