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सर्वार्थ
सिद्धि
टी का
८
॥ गतिजातिशरीराङ्गोपाङ्गनिर्माणबन्धनसंघातसंस्थानसंहननस्पर्शरसगन्धवर्णानुपूर्व्यागुरुलघूपघातपरघातातपोद्योतोच्छ्वासविहायोगतयः प्रत्येकशरीरत्रस सुभग सुस्वरशुभसूक्ष्मपर्याप्तिस्थिरादेययशःकीर्तिसेतराणि तीर्थकरत्व च ॥ ११ ॥
याका अर्थ - ए गतिआदि वियालीस भेद नामप्रकृतिके हैं। जहां जाके उदयतें आत्मा अन्यपर्यायकूं गमन करै, सो गति है । सो च्यारिप्रकार है। नरकगति, तिर्यग्गति, मनुष्यगति, देवगति ऐसें । बहुरि जिनविषै अव्यभिचारी समानभावकरि एकतारूप भया जो अर्थका स्वरूप सो जाति है । सो पांचप्रकार है एकेन्द्रियजातिनाम, द्वीन्द्रियजातिनाम, त्रीन्द्रियजातिनाम, चतुरिन्द्रियजातिनाम, पंचेन्द्रियजातिनाम । बहुरि जाके उदयतें आत्माके शरीर निपजै, सो शरीरनाम है । सो पांचप्रकार है औदारिक, वैक्रियक, आहारक, तैजस, कार्मण । बहुरि जाके उदयतें अंग उपांग निपजै, सो अंगोपांगनाम है । सो तीनप्रकार है औदारिक वैकियक आहारक ऐसें । बहुरि जाके उदयतें नेत्रादिककी यथास्थान तथा यथाप्रमाण निष्पत्ति होय, सो निर्माणनाम है । ताके दोय भेद हैं स्थाननिर्माण प्रमाणनिर्माण । बहुरि शरीर नामकर्मके उदय के वशर्तें पाये जे पुद्गलके स्कंध तिनका परस्पर प्रदेशनिका अनुप्रवेश होय बंधाय होय, सो बंधननाम है । जो शरीरके नामतेंही जिनके नाम ऐसे पांचप्रकार है ॥
वस
निका
पान ३१६
बहुरि जाके उदय औदारिक आदि शरीरनिके परमाणुनिके स्कंध परस्पर अनुप्रवेशर्तें एकरूप होय छिद्ररहित होय मिलै, सो संघातनाम है । सो भी शरीरनामधारक पांचप्रकार है । बहुरि जाके उदयतें औदारिक आदि शरीरनिके आकार निपजै, ते संस्थाननाम हैं । सो छहप्रकार है समचतुरस्रसंस्थान, न्यग्रोधपरिमंडलसंस्थान, स्वातिसंस्थान, कुब्जक संस्थान, वामनसंस्थान, हुंडुकसंस्थान । तहां जो ऊपर नीचे समान बरावरि विभागरूप शरीरके अवयवनिका स्थापन होय ' जैसे प्रवीण कारीगरका बनाया सर्व अवयव यथास्थान सुंदर होय तैसें समचतुरस्रसंस्थान है । बहुरि जो शरीरके अवयव उपारलै तौ बडे होय नीचे छोटे होय वडवृक्षकी ज्यों सो न्यग्रोधपरिमंडल है । बहुरि याके उलटा उपरितें छोटे होय नीचे चौडे होय सो स्वाति है, जैसें वंबी होय तैसा आकार होय । बहुरि जामें पीठि वडा होय सो कुब्जक है । बहुरि जामें सर्वही अंग छोटे होय सो वामन है । बहुरि जामें सर्वही अंग उपांग रुंड मुंड बुरे होय सो हुंडक है ॥
बहुरि जाके उदयतैं अस्थि कहिये हाड तिनकी बंधनका विशेष होय सो संहनननाम है । सो छह प्रकारका है। तहां जामें हाड अरु संधिके बडे कीला वज्रमयी होय अर वज्रमयी नसनिके वलयबंधनकार बंधे होय, सो वज्रवृषभनाराच