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सर्वार्थ
सिद्धि
टिका
भ. ८
माया लोभ ए च्यारि, अप्रत्याख्यानावरण क्रोध मान माया लोभ ए च्यारि, प्रत्याख्यानावरण क्रोध मान माया लोभ ए च्यारि, सज्वलन क्रोध मान माया लोभ ए च्यारि ऐसें सोलह भई ॥
तहां अनंत नाम मिथ्यात्वका है, जातैं यह मिथ्यात्व अनंतसंसारका कारण है, तिस मिथ्यात्वकी अनुसारणी या कै लार लगी या अनुराग करावनहारी होय, सो अनंतानुबंधी है । याके उदयतें सर्वथा एकांतरूप झूठा तत्वविषै तौ राग प्रीति होय है । अनेकान्तरूप सांच तत्त्वार्थर्ते द्वेप होय है । झूठाकूं साचा थापि ताकी पक्ष करे है, ताके वि सत्यार्थका अभिमान करें है, जो हमारा मानना सत्यार्थ है इत्यादि चेष्टा होय है । बहुरि जाके उदयतें एकदेशत्यागरूप श्रावक व्रत किंचिन्मात्र भी कार सकै है सो देश ईपत्प्रत्याख्यानकूं आवरण करें, सो अप्रत्याख्यानावरण है । बहुरि जाके उदय सकलसंयमकूं न पाय सकै, सो सकलप्रत्याख्यानकूं न आचरै, तात प्रत्याख्यानावरण है । बहुरि संयमकी लार एक होय तिष्ठै दैदीप्यमान रहे तथा तिसके होर्ते संयम भी दैदीप्यमान रह्या करै सो संज्वलन है |
इहां वेदनीयके भावनिका विशेष ऐसा, जो, स्त्रीसूं रमने आदि विकारभाव होय सो तौ पुरुषवेदके भाव हैं । बहुरि नपुंसकवेदवि स्त्रीपुरुष दोऊसूं रमनेरूप आदि विकारभाव होय हैं । बहुरि स्त्रीवेदके भावका विशेष सो लज्जाकरि नम्रीभूतपणा होय, अर जाके मनकी ग्लानि प्रगट न दीखे, कामका अभिप्राय रहै, नेत्रनिका विभ्रम होय, आलिंगननि सुख माने, पुरुषसूं रमनेकी वांछा रहै इत्यादिक जानना । सो भावनिका विशेष ऐसा कदाचित् पुरुषकै भी होय तब स्त्रीवेदका उदय कहिये । तथा नपुंसककै भी कदाचित् ऐसे भाव होय तव स्त्रीवेदहीका उदय कहिये । बहुरि स्त्रीके भी कदाचित् पुरुषनपुंसकके भावरूप वेदका उदय होय है अर शरीरके आकाररूप द्रव्य स्त्री पुरुष नपुंसक होय हैं । ते आकार नामकर्मके उदय होय हैं ॥
बहुरि क्रोधादिपरिणामका विशेष, तहां अपना परका जातै घात होय बहुरि उपकार जानें नाहीं अहितही करनेवाला कपरिणाम होय ताकूं अमर्प कहिये, सोही क्रोध है । इहां भावार्थ ऐसा भी, जो, परद्रव्य परणमें तामें ऐसे भाव होय, जो ' यह ऐसें क्यों परिणामें ऐसें खुनसि होय सो क्रोध है । ताका तीव्र मंद अपेक्षा च्यारि अवस्था हैं । ता च्यारि दृष्टांत -- तीव्रतर तो पापाणकी रेखासारिखा होय घणे कालमें मिटै । तीव्र पृथ्वीकी रेखासारिखी होय सो थोरेही कालमें मिट जाय । मंद धूलिरेखासारखी होय, सो अल्पकालहीमें मिटि जाय । मंदतर जलकी रेखासारखी होय, सो तत्कालही मिट जाय । ऐसें वासनातें क्रोधका विशेष है ॥
बहुरि जाति आदि आठ मदके कारण हैं, तिनके अवलंबनते परतै नमनेरूप परिणाम न होय सो मान है । याके भी
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निका
पान
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