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________________ करणा है । सो ऐसा है लक्षण जाका ऐसा कार्यकू प्रकर्षकार करै । जाते ऐसा कार्य प्रगट होय सो प्रकृति है ॥ बहुरि तिस प्रकृतिस्वभावतें छूटे नाहीं तेतें स्थिति कहिये। जैसे छेली गऊ भैसि आदिके दूधका मीठापणा स्वभावतें PM नेते न छूटना सो स्थिति है । तैसेंही ज्ञानावरण आदिका जो अर्थका न जानना आदि स्वभावतें न छूटना सो स्थिति सर्वार्थ । है । बहुरि तिन कर्मनिका रसका तीव्र मंद विशेष सो अनुभव है । जैसे छेली गऊ भैसि आदिका दूधका तीव्र मंद । वचसिदि निका PI आदि भावकरि रसस्वादका विशेष है तैसेंही कर्मपुद्गलनिका अपनेविर्षे प्राप्त भया जो सामर्थ्यका विशेष, पान | सो अनुभव है ॥ ३०८ बहुरि परमाणुनिका गणतिरूप अवधारणा जो एते है सो प्रदेश है, जो पुद्गलपरमाणुके स्कंध कर्मभावकू परिणये तिनका गणनारूप परिमाण यामें करिये है । बहार विधिशब्द है सो प्रकारवाची है । ते ए प्रकृति आदि तिस बंधके प्रकार हैं । तहां यौगते तो प्रकृति प्रदेश बंध होय हैं । कषायनिमित्ततें स्थिति अनुभव बंध होय हैं । तिन योगकपायनिके हीनाधिक होने” तिस बंधका भी विचित्रपणा होय है । इहां उक्तंच गाथा है, ताका अर्थ- आत्मा जोगते प्रकृति प्रदेश बंध करै है, अरु स्थिति अनुभाग कषायतें करै है । बहुरि योग कपायरूप न परिणमे तथा तेऊ छिन्न । होय जाय नष्ट होय जाय तब बंध स्थितिके कारण आत्माके नाहीं हैं ॥ ___" आगे आदिका जो प्रकृतिबंध ताका भेद दिखावनेके अर्थि सूत्र कहै हैं ॥ आयो ज्ञानदर्शनावरणवेदनीयायुर्नामगोत्रान्तरायाः ॥ ४ ॥ याका अर्थ- ज्ञानावरण दर्शनावरण वेदनीय मोहनीय आयु नाम गोत्र अंतराय ए आठ कर्मकी मूलप्रकृति हैं ।। तहां आद्य कहिये प्रकृतिबंध सो ज्ञानावरण आदि आठ भेदरूप जानना । तहां जो आवरण करै तथा जाकर आवरण होय सो आवरण कहिये । सो न्यारान्यारा जोडिये ज्ञानावरण दर्शनावरण ऐसें । बहुरि जो वेदना करावै अथवा जाकरि । वेदना होय, सो वेदनीय है । बहुरि जो मूढ करै भुलावै अथवा जाकार मूढ हूजे भूलिजे सो मोहनीय है। बहुरि || जाकरि नारकआदि भव प्राप्त करिये अथवा जो भवनैं प्राप्त करै, सो आयु है । बहुरि जो आत्माका नाम करै तथा जाकार नाम कीजिये, सो नाम है । बहुरि जाकार ऊंचा नीचा कहिये, सो गोत्र है । बहुरि दातार तथा देनेयोग्य वस्तु आदिकके मध्य अंतर करै, सो अंतराय है । एकही आत्माका परिणामकार ग्रहण भये जो पुद्गल ते ज्ञानावरण आदि अनेक भेदकू प्राप्त होय हैं। जैसे एकवार खाया जो अन्न ताका रस रुधिर आदि अनेक परिणामरूप
SR No.010558
Book TitleSarvarthasiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherShrutbhandar va Granthprakashan Samiti Faltan
Publication Year
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size28 MB
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