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समाया
वचनिका पान ३०७
पिकमती आदि कहै हैं, जो, कर्म आत्माहीका अदृष्ट नामा एक गुण है, ताका निराकरण भया । जातें जो केवल | आत्माहीका गुण होय तौ संसारका कारण होय नाहीं । बहुरि आदितें ऐसी क्रिया कही सो हेतुकै अर हेतुमानके भावके प्रगट करनेवँ कही है। हेतु तो मिथ्यादर्शन आदि पहले कहे ते अर हेतुमान् पुद्गलकर्मका बंध है । ताका कर्ता जीव
है। यातें ऐसा अर्थ सिद्ध होय है, जो, मिथ्यादर्शन आदिका आवेशतें आला सचिक्कण भया जो आत्मा ताकै सर्वतरMaa फकरि योगनिके विशेपते सूक्ष्म अर एकक्षेत्र अवगाहकरि तिष्ठते जे अनंतानंत पुद्गलके परमाणु तिनका विभागरहित टोका मिलि जाना सो बंध है, ऐसा कहिये है ॥ अब जैसे भाजनके विशेप जे हांडी आदिक तिनविर्षे क्षेपे जे अनेक रस बीज फूल फल तिनका मदिरारूप परिणाम
होय है, तैसें आत्मावि सामिल तिष्ठते जे पुद्गल ते योगनिकार बँचि हूये योग कषायके वशतें कर्मभावरूप परिणाम... प्राप्त होय है, ऐसा जानना । बहुरि सूत्रमें स ऐसा वचन अन्यकी निवृत्तिके आर्थि है, यहही एक बंध है, अन्य नाही है । ऐसें कहनेकार गुणकै अरु गुणीके भी बंध है सो बंध इहां न जानना । बहुरि बंधशब्द है सो कर्मसाधन है, तथा करणसाधन कर्तृसाधन भावसाधन भी जानना । तहां पहले बंधकी अपेक्षातें आत्मा बंधकार नवा बंध करै है। तातें बंधकू कारण भी कहिये, बहुरि जो आत्मा बांध्या सो बंध ऐसा कर्म भी कहिये, बहुरि आत्मा बंधरूप आपही परिणमें है तातें कर्ता भी बंधळं कहिये, बहुरि बंधनरूप क्रिया सोही भाव ऐसे क्रियारूप भी बंधकं कहिये । ऐसें प्रत्ययका | अर्थविवक्षात सिद्धि होय है । बहुरि ऐसा जानना, जो, आत्माकै कार्मणशरीररूप कोठा है । तामें कर्मरूप नाज भय रहै है। सो पुराना तौ भोगमें आता जाय है अर नवा धरता जाय है । याका संतान टूटे, तब मोक्ष होय है ॥
आगें पूछ है, जो, यह बंध कहा एकरूपही है कि याकै कोई प्रकार है ? ऐसें पूछे सूत्र कहै हैं
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॥प्रकृतिस्थित्यनुभागप्रदेशास्तद्विधयः ॥ ३ ॥ ___याका अर्थ- प्रकृति स्थिति अनुभव प्रदेश ए च्यारि तिस बंधकी विधि है । तहां प्रकृति तौ स्वभावक़े कहिये ।। जैसे नीमवृक्षकी प्रकृति कडुपणा है, गुडकी प्रकृति मीठापणा हैं, तैसें ज्ञानावरणकर्मकी प्रकृति पदार्थकू न जानना है । दर्शनावरणकी प्रकृति पदार्थका न देखना है । वेदनीयकी प्रकृति सुखदुःखका संवेदन है । दर्शनमोहकी प्रकृति तत्वार्थका अश्रद्धान है । चारित्रमोहकी प्रकृति असंयमभाव है । आयुकी प्रकृति भवका धारणा है । नामकी प्रकृति नारकआदि नामका कारण है। गोत्रकी प्रकृति ऊंचा नीचा स्थानका नाम पावना है । अंतरायकी प्रकृति दान आदिका विघ्न
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