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सर्वार्थसिद्धि
६ हेतुकार ग्रहण कर
विच
पान
1 नीकै समझि मिथ्यात्वकी निवृत्ति होय ऐसा उपाय करना । यथार्थ जिनागमकू जानि अन्यमतका प्रसंग छोडना अरु ।
अनादित पर्यायबुद्धि जो नैसर्गिकमिथ्यात्व ता, छोडि अपना स्वरूपकू यथार्थ जानि बंधसूं निवृत्ति होना, तिसहीका अभ्यास जैसे बणे तैसें करणा यह श्रीगुरुनिका प्रधान उपदेश है ॥ ___ आगें, वधके कारण तो कहे अब वध कहनेयोग्य है सो कहै हैं॥ सकषायत्वाज्जीवः कर्मणो योग्यान् पुद्गलानादत्ते स बन्धः ॥ २ ॥
निका ___ याका अर्थ- यह जीव है सो कपायसहितपणातें कर्मके योग्य जे. पुद्गल तिनकू ग्रहण करै है, सो वध है। तहां || 16 कषायकार सहित वतॆ ताकू सकषाय कहिये, ताका भाव सो सकपायत्व कहिये । ऐसा कषायपणाकू पंचमीविभक्तीकार
हेतुकारण कह्या सो यह हेतु कहनेका कहा प्रयोजन सो कहै हैं । जैसे उदरविर्षे अग्निका आशय है ताके अनुसार 10 आहारकू ग्रहण करै है तैसें तीव्र मंद मध्यम जैसा कषायका आशय होय ताके अनुसार स्थिति अनुभागरूप होय कर्म
ग्रहण होय बंधै है, ऐसें जणावने कह्या है । इहां प्रश्न, जो, आत्मा तो अमूर्तिक है, याकै हस्त नाही, सो कर्मका ग्रहण कैसे करै है ? ऐसे पूछे सूत्रमें जीव ऐसा शब्द कह्या है, जो प्राणनिके धारणते जीवै, सो जीव काहये । सो आयु । | नाम प्राणका संबंध है तेतै जीव है । जो आयुकर्मका संबंध न होय तौ जीवे नाहीं, ऐसा इस जीवनेकूही हस्तसहितकी उपमा है । ऐसा जीव कर्म• ग्रहण करै है । बहुरि कर्मयोग्यान् ऐसा कहनेमें लघुनिर्देश होता अक्षर घाटि आवता, सो यहां कर्मणो योग्यान् ऐसा क्यों कह्या ? ताका प्रयोजन कहै हैं, जो, इहां न्यारा विभक्तिका उच्चार कीया है, सो अन्यवाक्य जनावनेके अर्थि है । सो न्यारा वाक्य कहा ? सो कहे हैं, कर्मते जीव कपायसहित होय है, ऐसे एक वाक्य तो यह भया । इहां कर्मशब्दके पंचमीविभक्तिकरि हेतुअर्थ कीया, जाते कर्मरहित जीवकै कपायका लेश भी नाहीं है । ऐसा कहनेते यह प्रयोजन आया, जो, जीवकर्मका अनादिसंबंध है । तिसकरि ऐसा तर्कका निराकरण भया, जो, | अमूर्तिक जीव मूर्तिक कर्मत कैसें बंधै ? जो ऐसे न होय बंध नवीनही मानिये, तो पहले जीव सर्वथा शुद्ध ठहरै तौ RI RI सिद्धनिकीज्यों बंधका अभाव ठहरै है ॥
बहुरि दूसरा वाक्य ऐसा, जो, जीव कर्मके योग्य पुद्गलनिकू ग्रहण करै है। तहां अर्थके वशतें विभक्ति पलटि लीजिये, इस न्यायतें कर्मशब्दके पष्ठीविभक्तीकरि संर्वधका अर्थ कीया है । बहुरि पुद्गल कहने यह जानिये, जो, कर्म || हा है सो पुद्गलपरमाणुका स्कंध है । सो पुद्गलस्वरूपही है। यामें पुद्गलकै अरु कर्मकै तादात्म्य जनाया है । जाते केई वैशे
जणावने कहा ऐसा शब्द
ध न होय ताइनमें लघुनिर्देश का उच्चार कायाने एक वाक्य ।
जावे, सो जीव सा इस जीवन
, सो कर्मका | । सो आयु ।
Kala जनावनेके आला क्यों कह्या । बहुरि कर्मयोग्यान हाय तौ जीव न
सा कहने में ला JI कहनेत यह मशब्दके पंचमी वाक्य कहा ? कह हैं, जो, इ.