SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 317
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 99. वच पान हित कहै सो आगम है । वेदमें कहूं तौं हिंसाका निषेध किया है, कहूं हिंसा करना धर्म कह्या है, ताते विरुद्धवचन । प्रमाणभूत नाहीं । बहुरि अरहंतभापित आगममें हिंसाका निषेधही है, तातें प्राणीनिका वध धर्मका कारण नाहीं । फेरि वह कहै, जो, अरहंतका आगम कैसे प्रमाण करौ हौ ? ताकू कहिये, जो, अरहंत सर्वज्ञ वीतराग है, ताके वचन सत्यार्थ हैं, अतिशयरूप ज्ञानकी खानि है, यामें अनेक चमत्काररूप. स्वरूप लिखे हैं, तातै प्रमाण हैं ॥ सि दिशा निका फेरि कहै हैं, जो, अन्यके आगममें भी चमत्काररूप है लिखे हैं । ताकू कहिये, जो, चमत्कारस्वरूप लिख्या होगा, सो अरहंतके आगममेंसूही लेकरि लिख्या होगा । फेरि कहैं, जो यह तो तुमारी श्रद्धामात्रतें कहौ हौ । ताळू कहिये, जो, यह न्याय है, जहां बहुतवस्तुनिका बहुतप्रकारकार वर्णन होय ऐसा पूर्ण वर्णन अन्य जायगा नाहीं होय तब जाणिये, जो, जहां पूर्णरूप लिख्या होय सो तो आदि है मूल है अर जहां थोरा लिख्या होय तहां जानिये पूर्णमेसुं लेकार अपना नाम चलाया है । फेरि कहै, जो, अन्यके आगममें अरहंतके आगमतें लेकार लिखी है तौ ते भी प्रमाणभूत क्यों न मानिये? ताऊं कहिये, जो, लिखे हैं ते साररहित हैं । जातें आगममें सर्वही वस्तुनिका स्वरूप लिख्या था तिनमेंसूं पांच वस्तु साररहित लेकर लिख्या तो ते निरर्थक हैं ॥ बहुरि प्राणिवधकू धर्म लिख्या ताकू धर्म मानिये तो जे जीवहिंसक हैं तिनकै सर्वकै धर्मसाधन ठहरै है । फेरि कहै, जो, यज्ञसिवाय अन्य जायगा प्राणिवध करै तो आपहीके आर्थि है । ताकू कहिये, प्राणिनिका वध तो दोयजायगा बरोबरि है, दोऊही जायगा प्राणिनिकू दुःख होय है, यामें विशेष कहा ? फेरि कहै, मंत्रविधानतें पशुहोम कीये पाप नाहीं होय है । ताकू कहिये, जो, मंत्रकी सामर्थ्य तौ तब जानिये जो केवल मंत्रहीते पशूकू बुलायकार हो । होममें तो जेवडा बांधिकार पटकिये है ऐसे मारणेमें मंत्रकी सामर्थ्य कहा रही ? ताते यह तो प्रत्यक्षतें विरुद्ध है, जो, मंत्रसामर्थ्यते होमें पाप न होय । बहुरि जैसे शस्त्रादिकरि पशूनिकू मारै पाप होय है, तैसें मंत्रते भी मारै पापही होयगा हिंसाका दोष तौ न मिटैगा । जाते पशुकू बांधि होममें पटकते अशुभपरिणामही होय है। अशुभपरिणामहीते पाप है ॥ बहुरि वाकू पूछिये, जो, मत्रपूर्वक होम करै है, सो इस क्रियाका करनेवाला कर्ता कौन है ? जो, पुरुषकों बतावै तौ पुरुष नित्य कहेगा तौ ताके करनेके परिणाम काहेते होते ? परिणाम तौ अनित्यकै होय हैं । बहुरि अनित्य कहेगा तो स्मरणआदिका अभाव क्रिया तथा क्रियाका करनेवाला फल लेनेवाला न ठहरेगा । बहुरि पुरुषकू एकही मानेगा तो कर्ता । कर्म आदिका भेद किछु भी न संभवैगा । प्रत्यक्ष विरोध आवैगा । इत्यादि विचार कीये जिननें हिंसाकरिधर्म ठहराया है तिनके 11 वचनसौं रागी द्वेषी विषयी प्राणिनि के कहे भासै हैं, ताते प्रमाणभूत नाहीं । ऐसें मिथ्यादर्शनके अनेक भेद हैं । तिनकू ।
SR No.010558
Book TitleSarvarthasiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherShrutbhandar va Granthprakashan Samiti Faltan
Publication Year
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy