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अर्थ है ॥ बहार नियतवादी कहै है, जो, जिसकाल जाकार जैसें जाकै नियमकार होय है, सो तिसकाल तिसकारी । तिसप्रकार ताकैही होय है, ऐसा नियम है ऐसा नियतवादका अर्थ है ॥ बहुरि स्वभाववादी कहै है, देखौ, कंटकके
तीखापणा कौन करै है ? अरु पशु पंखी आदि जीवनिकै अनेकप्रकारपणा कौंन करै है ? तातें जानिये है कि स्वभावही सर्वार्थ- ऐसे करै है, ऐसे स्वभाववादका अर्थ है ॥ ऐसें क्रियावादके भेद कहे ॥
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निका से अव अक्रियावादके मूलभेद दोय नास्तिक स्वतः परतः ऐसें । दोऊवं पुण्यपापविना सात पदार्थनिपरि लगाईये, तब टि का
पान म ८
चौदह भये । बहुरि काल ईश्वर नियति आत्मा स्वभाव इन पांचनिपरि लगाईये तब सत्तार भंग होय हैं । बहुरि काल अरु नियतिकरि सात पदार्थ फेरि नास्तित्वपरि लगावणा ऐसें चौदह होय हैं । सब मिली चौरासी अक्रियावादके भंग होय हैं । याका उदाहरण, जीवपदार्थ कालकरि आपहीत नास्तिकस्वरूप कीजिये है । जीव नाम पदार्थ कालकर परतें नास्तिकस्वरूप कीजिये है । ऐसेंही अजीव आदिपरि लगावणा तब चौदह होय । बहुरि ईश्वरआदि च्यारिपरि लगायें चौदह चौदह होय । सब मिलि सत्तरि हैं । बहुरि ऐसेही चौदहका उदाहरण काल अरु नियति इन दोयहीपरि नास्तित्वपणा लगाया जो जीवकालतें नास्तित्व कीजिये है । जीव नियतित है नास्तित्व कीजिये है, ऐसें सातपदार्थके चौदह । होय । इहां विशेष यह भया, जो, स्वतः परतः न कह्या नास्तित्वही कह्या । ऐसे अक्रियावादके चौरासी भंग जानने ॥ । . अब अज्ञानवादके सतसठि भंग कहे हैं । तहां नवपदार्थनिपरि अस्तिनास्ति आदि वचनके सात भंग हैं ते लगावणे, तब तरेसठि होय । याका उदाहरण, जीवपदार्थ अस्तिस्वरूप है, यह कौन जाने हैं ? कोऊही न जाने । जीव नास्तिस्वरूप है, यह कौन जाने है ? कोऊही जानें नाहीं । ऐसें सातौही भंग नवपदार्थपरि लगाय लेणे । बहुरि नवपदार्थका भेद नाहीं करै, अर एक शुद्धपदार्थ थापि अर अस्ति नास्ति अस्तिनास्ति अवक्तव्य ए च्यारि भंग लगावणे, तब च्यारि होय । यामें ऐसा कहना, जो, पदार्थ है कि नाहीं है, कि दोऊरूप है, कि अवक्तव्य है । ऐसें कोन जाने है? कोऊही जानें नाहीं । इहां भावार्थ ऐसा, जो, सर्वज्ञ कोऊ नाही सर्वज्ञविना कोन जाने ? ऐसे अज्ञानकी पक्ष भई, तात सब मिलि अज्ञानवादके सतसठि भंग भये ॥
अब वैनयिक वादके बत्तीस भंग कहै हैं । विनय मन वचन काय ज्ञान इन च्यारिनिकरि होय है, सो देव राजा ज्ञाति यति वृद्ध बाल माता पिता इन आठनिका होय । तब एकएकप्रति च्यारि दिये । तब बत्तीस भंग भये । इनका अर्थ देवमात्रका विनय किये सर्वसिद्धि है इत्यादि सुगम है, सो जानना । ऐसें ए तीनिस तरेसठि वाद स्वच्छंद प्रवर्तनेवाले निकले हैं। पाखंडी मिथ्यादृष्टीनिके व्याकुल करनहारे हैं। अज्ञानी लोकनिके चित्त• हरै हैं, रंजायमान करै हैं । ज्ञानी