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________________ व परमपूज्य चारित्रचक्रवर्ती आचार्यवर्य श्री १०८ शांतिसागर महाराजके आदेशसे श्री दिगंबर जैन जिनवाणी जीर्णोद्धारक संस्थाकी तरफसे ज्ञानदानके लिये छपी हुई सर्वार्थ वच तिवीर संवत् २४८१ ] टीका श्रीवीतरागाय नमः ॥ ॐ नमः सिद्धेभ्यः ॥ [ प्रथ प्रकाशन समिति, फलटण || निका अथ तत्त्वार्थसूत्रकी सर्वार्थसिद्धिटीका वचनिका पंडित जयचंदजी कृता अ.८ पान ३०० दोहा-- आठ करमके बंधकू। कादि भये निकलंक ॥ नमूं सिद्ध परमातमा । मन वच काय निशंक ॥१॥ ऐसें मंगलके अर्थि सिद्धिनिकू नमस्कार करि आठमां अध्यायकी वचनिका लिखिये है। तहां सर्वार्थसिद्धिटीकाकारके वचन हैं जो आश्रवपदार्थका तो व्याख्यान किया, ताकै अनंतर है नाम जाका ऐसा बंध पदार्थ है, सो अब व्याख्यान करनेयोग्य है, ता, व्याख्यान योग्य होते पहले तो बंधका कारणका स्थापन करिये है । जातें बंध है सो कारणपूर्वक है, यात ताका सूत्र कहै हैं ॥ मिथ्यादर्शनाविरतिप्रमादकषाययोगा बन्धहेतवः ॥ १॥ ___याका अर्थ- मिथ्यादर्शन अविरति प्रमाद कपाय योग ए पांच बंधके कारण हैं । तहां मिथ्यादर्शनादिक तो पहले। कहे तेही हैं । तत्त्वार्थश्रद्धानका प्रतिपक्षी अतत्वार्थश्रद्धान तथा आश्रवके विधानविपें मिथ्यादर्शनक्रिया कही, सो तौ मिथ्यादर्शन जानना । बहुरि विरति पहले कही, तिसके प्रतिपक्षभूत अविरति जाननी । बहुरि आश्रवविधानमें आज्ञाव्यापादिकी तथा अनाकांक्षा क्रिया कही, तिनवि प्रमादका अंतर्भाव जानना । सो प्रमाद कल्याणरूपकार्यविर्षे अनादर
SR No.010558
Book TitleSarvarthasiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherShrutbhandar va Granthprakashan Samiti Faltan
Publication Year
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size28 MB
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