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ऐसे सातवा अध्यायमें आश्रवपदार्थका भेद जो पुण्यका बंध करनेवाली अणुव्रत है, महाव्रत समितिक्रियारूप तथा हा तिनकी भावना, अतीचार टारना, दानका स्वरूप इत्यादिक कह्या, ताकू सुनिकरि भव्यजीव मोक्षमार्गका कथंचित् सहकारी जानि सेवौ । तातें अनुक्रमतें शुद्धात्मस्वरूपका अनुभव कार मोक्ष पावौ । ऐसा श्रीगुरुनिका उपदेश है ॥
सर्वार्थ
सिदि
॥ सवैया ॥ आश्रवपदार्थका भेद शुभवृत्तिरूप पंच पापपरिहार समिति सुहावनी । शीलके अनेक भेद यती घरवासी वेद अतीचार टारे विधि धारे महापावनी ॥ दान देय भाव छानि पात्र मानि दुखी जानि पावें फल तिस्यौं स्यादवाद यों कहावनी । सातमी सुसंधि कथा सुनूं मुनि कही यथा पुण्य लेस होय बंध काटि मोक्ष भावनी ॥१॥
वच
निका
ऐसे तत्वार्थका है अधिगम जातें ऐसा जो यह मोक्षशास्त्र ताविर्षे सातवा अध्याय पूर्ण भया ॥
इति श्री परमपूज्य धर्मसाम्राज्यनायक योगींद्रचूडामणि, सिद्धांतपारंगत, चारित्रचक्रवर्ती श्री १०८ आचार्य श्रीशांतिसागरजी महाराजके आदेशसे ज्ञानदानके लिए श्री. प. पू. चा. च. आ. श्री १०८ शांतिसागर दिगंबर जैन जीर्णोद्धारक संस्थाकी ओरसे छपी हुई श्री तत्त्वार्थसूत्रकी श्रीमत्पूज्यपादाचार्य विरचित सर्वार्थसिद्धीकी पंडित जयचंदजीकृता टीका
. वचनिकाविर्षे सातवा अध्याय संपूर्ण भया ॥७॥ ' ' ग्रंथ प्रकाशन समिति, फलटण वीर सं. २४८१