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सर्वार्थ
सिद्धि
टीका
अ. ७
गंधमाल धूपादि सामग्री तथा अपने धारणके वस्त्र आदिकका उठावना लेना, सो । संस्तरोपक्रमण कहिये भूमिपरि बिछावणा आदिकरि सांथरा करणा ऐसें तीनि तौ ए भए । बहुरि क्षुधाकरि पीडित होनेतें जो उपवासमें आवश्यक आदि क्रिया करनी तिनविर्षै उत्साह नाहीं निरादरतें कालपूरण करना, सो आनादर है । बहुरि क्रिया यादि न राखणी भूलि जाना, सो स्मृत्यनुपस्थान है । ऐसें ए पांच अतीचार प्रोषधोपवासके हैं |
आर्गै उपभोगपरिभोगपरीमाणके अतीचार कहे हैं
॥ सचित्तसम्बन्धसम्मिश्राभिषवदुष्पक्वाहाराः ॥ ३५ ॥
याका अर्थ- सचित्तवस्तु, सचित्तकार मिल्या वस्तु, सचित्तके संबंधरूप वस्तु, द्रव्यरूपवस्तु, विना नीका पकी वस्तु इनका आहार करना ए पांच उपभोगपरिभोगपरिमाणके अतीचार हैं । तहां जीवकरि सहित होय सो सचित्त है । तिस सचित्तकार भिड्या होय सो सचित्त संबंध है । सचित्तसूं मिल्या होय सो सम्मिश्र है । इनविषै प्रवृत्ति प्रमादतें तथा अतिभूखतैं तथा तीव्ररागतैं होय । बहुरि द्रव्यरूप रस तथा वृप्य कहिये पुष्टिकार वस्तु सो अभिषव है । बहुरि भलेप्रकार पक्या नाहीं ऐसी वस्तु । इन पांच वस्तूनिका आहार करना ए पांच अतीचार उपभोगपरिभोगपरिमाणके हैं | आर्गै अतिथि संविभाग के अतीचार कहै हैं-
॥ सचित्तनिक्षेपापिधानपरव्यपदेशमात्सर्यकालातिक्रमाः ॥ ३६ ॥
याका अर्थ- सचित्तविर्षे धरणा, सचित्ततैं ढाकना, परका नाम करना, मात्सर्य करना, काल उल्लंघना ए पांच अतीचार अतिथिसंविभागके हैं। तहां सचित्त कहिये जीवसहित कमलका पत्र पातलि आदिक तिनविर्षै निक्षेप कहिये मुनिनिकूं देनेका आहार आदिका धरना । बहुरि अपिधान कहिये तिस सचित्तहीर्तें ढाकना । बहुरि अन्यदातारका देय कहिये आहार आदि देनेयोग्य वस्तु सो लेकारी अपना नाम करना तथा परकूं आप सोपि परका नाम करना आप नाम न करना, सो परव्यपदेश है । बहुरि दान देना तामें आदर नाहीं निरादरतें देना तथा अन्य देनेवाला यथाविधि देय ताकूं गुणकूं सराहना नाहीं अदेखसा भाव करना, सो मात्सर्य है । बहुरि अकालविषै भोजन दना कालकूं उल्लंघना,
सो कालातिक्रम है । ऐसें ए पांच अतीचार अतिथिसंविभागशीलके हैं । ऐसें सात शीलके अतीचार कहे ||
आगे सल्लेखनाके अतीचार कहै हैं
वच
निका
पान
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