________________
सर्वार्थसिद्धि टी का
क्ष. ७
॥ ऊर्ध्वाधस्तिर्यग्व्यतिक्रमक्षेत्रवृद्धिस्मृत्यन्तराधानानि ॥ ३० ॥
याका अर्थ - ऊर्ध्व अघः तिर्यक् इन तीनिनिकी मर्यादाका व्यतिक्रम करणा अर क्षेत्रकं बधाय लेना मर्यादाकरि होय ताकूं भूलि अन्य धारण करणी ए पांच अतीचार दिग्विरतिके हैं । तहां जो दिशाकी मर्याद करी थी तार्तें उल्लंघि जाना सो अतिक्रम कहिये । सो संक्षेपतैं तीनिप्रकार है ऊर्ध्व अतिक्रम अधः अतिक्रम तिर्यक् अतिक्रम ऐसें । तहां पर्वतादि चढने में मर्यादसिवाय चढे सो ऊर्ध्वातिक्रम है । बहुरि कूपआदिविषै मर्यादसिवाय उतरणा सो अधः अतिक्रम है । बहुरि बिल गुफा आदिका प्रवेशविषै तिर्यक् अतिक्रम है । बहुरि दिशाकी मर्याद करी थी तामैं लोभका वश अधिकका अभिप्रायकरि बधावना, सो क्षेत्रवृद्धि है । सो यह अतिक्रम प्रमादतें तथा मोहर्ते तथा परिग्रहके निमित्ततें होय है । बहुरि मर्याद करी होय ताकूं भूलि जाणा यादि न राखणां सो स्मृत्यंतराधान है । ऐसे ए दिग्विरतिके अतीचार पांच हैं ॥
आगे देशविरति व्रतके अतीचार कहें हैं, ताका सूत्र कहै हैं-
॥ आनयनप्रेष्यप्रयोगशब्दरूपानुपातपुद्गलक्षेपाः ॥ ३१ ॥
याका अर्थ — आनयन प्रेष्यप्रयोग शब्दानुपात रूपानुपात पुद्गलक्षेप ऐसैं ए पांच अतीचार देशविरतके है । तहां जिस देशकी मर्यादा कर बैठ्या होय तहांतें प्रयोजनके वशर्तें अन्यकूं कहिकरि कछू वस्तु अन्यक्षेत्र मंगावणा, सो आनयन है । बहुरि अन्यकूं कहना, जो, तुम ऐसें करौ, सो प्रेप्यप्रयोग है । बहुरि आप मर्यादा कार जिस क्षेत्रविषै बैठें, तहां बैठाही बाहिरके फिरनेवाले पुरुषनिकूं खासी खंधार आदि शब्दकी समस्याकरि प्रयोजन समझाय देना, सो शब्दानुपात है । बहुरि तैसैंही अपना शरीररूप दिखाय समझाय देना, सो रूपानुपात है । बहुरि तैसैंही कछु कंकर आदि वगाय समझाय देना, सो पुद्गलक्षेप है । ऐसें ए देशविरमणके अतीचार हैं ॥
आगें अनर्थदंडविरतिके अतीचार कहे हैं
॥ कन्दर्पकौत्कुच्यमौखर्यासमीक्ष्याधिकरणोपभोगपरिभोगानर्थक्यानि ॥ ३२ ॥
याका अर्थ - कंदर्प कौत्कुच्य मौखर्य असमीक्षाधिकरण उपभोगपरिभोगअनर्थक्य ए पांच अतीचार अनर्थदण्ड
वस
निका
पान
२९४