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सार्थ-01
ए पांच अदत्तादानविरति अणुव्रतके अतीचार हैं ।
आगें ब्रह्मचर्य अणुव्रतके अतीचार कहै हैं
॥ परविवाहकरणेत्वरिकापरिगृहीतापरिगृहीतागमननाङ्गक्रीडाकामतीबाभिनिवेशाः ॥ २८॥ सिह याका अर्थ- परविवाहकरण परिगृहीतइत्वरिकागमन अपरिगृहीतइत्वरिकागमन अनंगक्रीडा कामतीव्राभिनिवेश ए पांच वच
निका | ब्रह्मचर्य अणुव्रतके अतीचार हैं । तहां कन्याका दना परिणावना सो विवाह है, सो परका विवाह करणा, सो परविवाहकरण कहिये । बहार जो परपुरुषानप्रति गमन करै सो इत्वरी कहिये इस शब्दकै निंदा अर्थविर्षे कप्रत्ययते इत्वरिका ऐसा नाम भया । सो एकपुरुषही जाका भरतार होय सो परिगृहीता कहिये, तिसप्रति गमन करिये सो परिगृहीत इत्वरिकागमन कहिये। बहार जो वेश्यापणाकरि पुंश्चली होय अनक जाके भरतार होय सो अपरिगृहीता इत्वारका कहिये, तिसप्रति गमन करै सो अपरिगृहीताइत्वरिकागमन कहिये। बहुरि अंग कहिये प्रजननलिंग तथा योनि इन विना अन्यरीति क्रीडा, सो अनंगक्रीडा कहिये । बहुरि कामका बधता परिणाम सो कामतीवाभिनिवेश कहिये जामें कामसेवनेका निरंतर अभिप्राय प्रवते ते ए पांच स्वदारसंतोष नामा व्रतके अतीचार कहे हैं । आगें पांचवा अणुव्रतके अतीचार कहै हैं ।
॥ क्षेत्रवास्तुहिरण्यसुवर्णधनधान्यदासीदासकुप्यप्रमाणातिकमाः ॥ २९॥ याका अर्थ-- क्षेत्र वास्तु, हिरण्य सुवर्ण, धन धान्य, दासी दास, कुप्य इनका प्रमाणते उल्लंघना, सो पंचम अणु-151 व्रतके अतीचार हैं । तहां क्षेत्र तौ नांज उपजनेका आधार ताकू खेत कहिये, वास्तु अगार घरकू कहिये, हिरण्य रूपा
आदिका व्यवहार, सुवर्ण सोना, धन गऊ आदि, धान्य तण्डुल, दासी दास चाकर स्त्री पुरुष, कुप्य कपास रेसम चंदन | आदि । तहां क्षेत्र वास्तु, हिरण्य सुवर्ण, धन धान्य, दासी दास, ऐसे च्यारि तौ दोयदोयका युगल लेना । बहुरि एक ६ कुप्य ऐसे ए पांच भये । तिनका परिमाण किया होय जो मेरै एताही परिग्रह है अन्यका त्याग है फेरि तिसकू अति। लोभके वशतें उल्लंधै बधाय ले, सो ए पांच अतीचार परिग्रहपरिमाणव्रतके हैं ॥
__ ऐसे पांच अणुव्रतके अतीचार तो कहे, आगें शीलनिके अतीचार कहै हैं । तहां प्रथमही दिग्विरति नामा ।।। Hd शीलके कहे हैं, ताका सूत्र--
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