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________________ हा अपनी पुरका प्रयोगके जो क्रियाविशीष, तिनविय अपहार साकारमंत्री वशर्ते पर ठगन ताका प्रगट करन• अन्यथा प्रो पाच अतीचार सत्य 18/ वालाळू यादि नाना सो कूटलेखक्रिया आर्थ झूठा लिखना जा रहोभ्याख्यान है मिथ्योपदेश हैं। हामारी ल्यो ऐसा ताकत होय गया पीनार काऊनें रूपा सोना सा कया है तथा समन्यपुरुषनें कह्या विच नकार प्रकरणकार अंगालख्याका वचन कहनात अल्प संख्या कहि माघरा होय सो ताकी संस्था है ऐस // पान 18 आगें अवताका प्रगट करना, सोबरा भ्रकुटिका विशेष लापी तेती न बताना राखनेवालेने कही ऐलीवाना ॥ मिथ्योपदेशरहोभ्याख्यानकूटलेखक्रियान्यासापहारसाकारमन्त्रभेदाः ॥ २६ ॥ याका अर्थ-- मिथ्या उपदेश रहोभ्याख्यान कूटलेखक्रिया न्यासापहार साकारमंत्रभेद ए पांच अतीचार सत्यअणु| व्रतके हैं। तहां स्वर्गमोक्षके कारण जे क्रियाविशेष, तिनविर्षे अन्यप्राणीनिकं अन्यथा प्रवर्तावना सो मिथ्योपदेश हैं । बहुरि स्त्रीपुरुषनें एकांतविपें किया जो क्रियाविशेष ताका प्रगट करना, सो रहोभ्याख्यान है । बहुरि अन्यपुरुषनें कह्या निका नाहीं अर परका प्रयोगके वशते परळू ठगनेके अर्थि , झूठा लिखना जो इसने ऐसा कह्या है तथा ऐसा किया है ऐसे अपनी इच्छातें बणावना, सो कूटलेखक्रिया है । बहुरि काऊनें रूपा सोना आदि द्रव्य धरा होय सो ताकी संख्या धरने- २९२ वालाकू यादि न रही विस्मृत होय गया पीछे मांगी तब अल्प संख्या कहि मांगी तब राखनेवालेने कही ऐतीही है। तुमारी ल्यो ऐसा ताके अल्पसंख्याका वचन कहना जेती पैलें सोंपी तेती न बतावना, सो न्यासापहार है । बहुरि प्रयोजनकार प्रकरणकार अंगकी चेष्टाकार भवरा भ्रकुटिका विक्षेपकार इत्यादि चेष्टाकार परका आभप्राय जाणिकरि चुगली करनेकू ईपोदिकतै ताका प्रगट करना, सो साकारमंत्रभेद है। ऐसे ए पांच सत्य अणुव्रतके अतीचार हैं । आगे अचौर्यव्रतके अतीचार कहै हैं॥ स्तेनप्रयोगतदाहृतादानविरुद्धराज्यातिक्रमहीनाधिकमानोन्मानप्रतिरूपकव्यवहाराः ॥ २७॥ याका अर्थ-- स्तेनप्रयोग तदाहृतादान विरुद्धराज्यातिक्रम हीनाधिकमानोन्मान प्रतिरूपकव्यवहार ए पांच अचौर्यअणुव्रतके अतीचार हैं। तहां कोई चोरी करता होय ताळू आप प्रेरै तथा परकू कहिकरि प्रेरणा करावै अथवा पैला प्रेरै ताकी सराहना करै ताकू भला मानै सो स्तेनप्रयोग है। इहां स्तेन नाम चोरका है, ताळू प्रेरै बहुरि चोरकू आपु प्रेन्या भी नाहीं २ सय भी नाही परंतु चोरका ल्याया द्रव्यका ग्रहण करै, सो तदाहृतादान है । बहुरि योग्यन्यायकू उल्लंघि अन्यप्रकार लेना देना सो तो अतिक्रम कहिये, सो यऊ राज्यसूं विरुद्ध होय सो विरुद्धराज्यातिक्रम है । तहां बडा मोलकी वस्तु अल्प १) मोलमें लेणेका यतन विचारवौ करै, सो विरुद्धराज्यातिक्रम जानना । बहुरि पाई माणि इत्यादिक तौ मान कहिये, इनकू प्रस्थ आदि कहिये । बहुरि ताखडीके तौला आदि उन्मान कहिये । सो इनकार घटनेकार तो परकू देना अर वधतकार परका लेना इत्यादि कूडा प्रयोग करना, सो हीनाधिकमानोन्मान है । बहुरि खोटे सोना रूपा बणाय ठिगनेके a अर्थ व्यवहार करै परकू खोटी वस्तुकू क्रियाकरि आच्छी दिखाय दे ऐसें कूड करै, सो प्रतिरूपकव्यवहार है । ऐसें ।
SR No.010558
Book TitleSarvarthasiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherShrutbhandar va Granthprakashan Samiti Faltan
Publication Year
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size28 MB
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