________________
हैं। हहां ऐसा भी विशेष जानना, जो, सम्यग्दृष्टि मुनि · तथा श्रावक दोऊही होय हैं, सो ए अतीचार || दोऊनिकै संभवै हैं ॥
वचनिका
पान २९१
10
आगें, सम्यग्दृष्टीके अतीचार तो कहे, बहुरि पूछे है कि ऐसे अतीचार व्रतशीलनिविर्षे भी होय हैं कहा ? ऐसे पूछे HY आचार्य कहै हैं, हां, होय हैं । ऐसें कहिकरि तिन अतीचारनिकी संख्या कहनेकू सूत्र कहै हैंटीका
॥ व्रतशीलेषु पंचपंच यथाक्रमम् ॥ २४ ॥ याका अर्थ- पांच व्रत अर सात शील एक सल्लेखना इनविर्षे पांच पांच अतीचार अनुक्रमतें जानने । इहां व्रतशीलका द्वंद्वसमास करना । इहां तर्क कहै हैं, शीलका ग्रहण अनर्थक है । व्रतग्रहणहीते शीलका ग्रहण होय है । जातें शील भी व्रतही है । आचार्य कहैं हैं, अनर्थक नाही है,। इहां विशेष जनावनेके अर्थि शीलका ग्रहण है । ए शील हैं ते व्रतनिकी रक्षाके अर्थि हैं ऐसा जान्या जाय है । याते दिग्विरत्यादिक इहां शीलके ग्रहणकरि जानने । बहुरि अगारीके अधिकारतें ऐसा जानना, जो, ए पांच पांच अतीचार कहियेगा ते अगारी गृहस्थ श्रावकके व्रतशीलनिवि हैं सोही कहै हैं । तहां प्रथमही आदिका अहिंसा नामा अणुव्रतका सूत्र कहै हैं
॥ बन्धवधच्छेदातिभारारोपणान्नपाननिरोधाः ॥२५॥ याका अर्थ- बंध वध छेद अतिभार लादणा अन्नपानका रोकना ए पांच अतीचार अहिंसाअणुव्रतके हैं। तहां प्राणीनिका मनोवांछित गमन करनफू रोकना बांधना सो तौ बंध कहिये । बहुरि लाठी चाबुक वेतकार घात करना चोट देना सो वध कहिये यामें प्राणव्यपरोपण न लेना । जातें यह पहली हिंसाहीमें कह्या है । बहुरि कान नाक आदिक अंगउपांगका छेदना, सो छेद कहिये । बहुरि न्याय बोझते अधिक लादि चलावना, सो अतिभारारोपण कहिये । बहुरि ।। गऊ आदिकू क्षुधा तृषा आदि बाधारूप क्रियाका करना, खाना पीना न देना, सो अन्नपाननिरोध है । ए पांच अहिंसा अणुव्रतके अतीचार हैं ।
आगें दूजे अणुव्रतके अतीचार कहने• सूत्र कहै हैं