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सर्वार्थ-01
निका पान
भ७
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॥ मैथुनमब्रह्म ॥ १६ ॥ याका अर्थ- मैथुन कहिये कामसेवन सो अब्रह्म है । तहां स्त्रीपुरुष चारित्रमोहके उदयकू होते रागपरिणामकार
सहित होय तब तिनकै परस्पर स्पर्शनकी इच्छा होय, सो मैथुन है, तिसका भाव तथा कार्यका नाम मैथुन है । जाते सिदि
लोकविर्षे तथा शास्त्रविर्षे तैसेंही प्रसिद्ध हैं । लोकवि तौ बालगोपाल स्त्री सर्व जानें हैं, जो, स्त्रीपुरुपकै रागपरिणामतें टी का चेष्टा होय सो मैथुन है । बहुरि शास्त्रविर्षे भी घोडे बलधके मैथुनकी इच्छाविर्षे इत्यादिक पाठ हैं, तहां मैथुनका ग्रहण
कीजिये है । बहुरि इहां प्रमत्तयोगकी अनुवृत्ति है, ताकरि भी स्त्रीपुरुषका , युगलसंबंधी रतिसुखके अर्थि चेष्टा होइ, सोही मैथुन ग्रहण कीजिये है । सर्वही कार्यमें मैथुन नाहीं । बहुरि जाके पालते संते अहिंसादिक गुण वृद्धि प्राप्त होय
सो ब्रह्म है, जो ब्रह्म नाहीं सो अब्रह्म हैं । सो ऐसा अब्रह्म मैथुन है। इस मैथुनतें हिंसादिक दोष हैं ते पुष्ट होय हैं । जाते b मैथुन सेवनेवि जो पुरुष तत्पर है सो थावर त्रस प्राणीनिकू हणै है, झूठ वचन बोलै है, चोरी करै है, चेतन
| अचेतन परिग्रहका ग्रहण कर है, ऐसें जानना । इहां ऐसे कहनेते स्त्रीपुरुष रागपरिणामविना अन्य कोई कार्य करै, सो b| मैथुन नाहीं । तथा दोय पुरुष कोई कामसेवनविना अन्य कार्य करै सो मैथुन नाहीं, ऐसा सिद्ध होय है । तथा काम
सेवनके परिणामतें एकही पुरुष जो हस्तादिकते चेष्टा करै सो भी मैथुन है । जातें तहां दूसरा रागपरिणामके विर्षे संकल्प है । जैसे काहूंकों भूत लागै तैसें इहां दूसरा काम है, तातें मैथुनशब्दकी सिद्धि है ॥ आगें, पांचवां जो परिग्रह ताका कहा लक्षण है ऐसे पूछे सूत्र कहै हैं
॥ मूर्छा परिग्रहः ॥ १७ ॥ ___ याका अर्थ- मूर्छा कहिये परविर्षे ममत्वपरिणाम सो परिग्रह है । तहां बाह्य जे गऊ भैसि मणि मोती आदि
चेतन अचेतन वस्तु अर अभ्यंतर जे राग आदिक ऐसे जे परिग्रह तिनकी रक्षा करना उपार्जन करना संस्कार करना २ ऐसा जो व्यापार, सो मूर्छा है । इहां प्रश्न, जो, लोकविर्षे वायु आदि रोगके प्रकोपते अचेतन होय जाय ताकं मुर्छा
कहै हैं, सो प्रसिद्ध है, सो तिस अर्थकू ग्रहण काहेरौं न कीजिये १ ताका उत्तर, जो, यह तो सत्य है, लोकमें तिसहांक मुर्छा कहै है । परंतु यह मूर्छि धातु है सो मोहसामान्य अर्थविर्षे वतॆ है, सो सामान्यकी प्रेरणा विशेष अथिविर्षे है । ऐसें होतें विशेषका अर्थ इहां ग्रहण है । जाते इहां परिग्रहका प्रकरण है । इहां फेरि पूछे है, जो ऐसें कहै भी बाह्य