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________________ / अनृत है, ऐसा मत हैं तै अहिंसावतकी THIS जहां हिंसा होय, सो सर्व सर्वार्थ-/ बहुरि सर्वथा विपरीत करना । सो सर्वथा नि है । तातें इहां जो वस्तु विषय विद्यमान होऊ अथवा विद्यमान मति होऊ, जहां हिंसा होय, सो सर्व अनृत कहिये है । सो पहले ऐसा २ कह्या था, जो, अन्य व्रत हैं तै अहिंसाव्रतकी रक्षाके अर्थ है । तातै इहां जो हिंसाका कहनेवाला होय सो वचन I अनृत है, ऐसा निश्चय करना । सो सर्वथा निषेधकाही अर्थ लीजिये तो शून्यका प्रसंग आवै, ताते युक्त नाहीं । बहुरि सर्वथा विपरीत अर्थ लीजिये तो वस्तुका स्वरूप अन्यथा कहै हैं, ताहीका प्रसंग होई । कोई सत्यवचन ऐसा है, सिदिRI जाकरी प्राणीनिकू पीडा होय है, सो नाही आवै है । तातें अप्रशस्त अर्थमें दोऊ आय गये । झूठ कहना भी अनृत वच निका टीका है । बहुरि सांच कहै अर जातें प्राणीनिकू पीडा होय हिंसा होय सो भी अनृत है । ऐसा भावार्थ जानना ॥ कहिये है । सो पहले ऐसा । म. पान आगें पूछे अनृतके अनंतर कह्या जो स्तेय ताका कहा लक्षण है ? ऐसे पूछे सूत्र कहै हैं ॥ अदत्तादानं स्तेयम् ॥ १५ ॥ याका अर्थ- अदत्त कहिये विना दिया वस्तु धनादिक, ताका आदान कहिये लेना, सो स्तेय है। इहां आदान | नाम ग्रहणका है, जो अदत्त कहिये विना दियेका ग्रहण, सो अदत्तादान है । इहां तर्क, जो, ऐसे है तौ कर्मके वर्गणा तथा नोकर्मके वर्गणा हैं ते काऊने दिये नाही, तिनका ग्रहण अदत्तादान ठहया । ताका समाधान, जो, यह दोप इहां । नाहीं । जातें इहां अदत्त शब्द कह्या है । ताका ऐसा अर्थ आवै है, जो, जिसविर्षे देनेलेनेका व्यवहार होय ऐसै धनादि वस्तुतेही अदत्त जानना, कर्मनोकर्मके ग्रहणवि देनेलेनेका व्यवहार नाही, ते सूक्ष्म हैं अदृष्ट हैं । बहुरि कहै, जो, ऐसे भी यह प्रसंग आवै है, जो मुनि आहार लेनेकू जाय हैं, तब गली रस्ताके दरवाजे आदि होय हैं, तिनमें प्रवेश करै | है, सो विना दीये हैं, तिसमें स्तेयका दोप आया । ताळू कहिये, जो, यह दोप भी नाही, जातें गली रस्ताके दरवाजे | आदि लोकनिने सामान्यपणे देय राखे हैं । कोई आवौ कोई जावौ, तहां वर्जन नाहीं । याहीत मुनि है सो जहां द्वारके | कपाट आदि जुडे होय तहां वर्जना होय तहां प्रवेश न करें हैं । अथवा प्रमत्तयोगकी अनुवृत्ति है । तातें गली आदिमें ।। प्रवेश करते मुनिके प्रमत्तयोग नाहीं है । तातें यह अर्थ है, जहां संक्लेशपरिणामकरि प्रवृत्ति होय तहां स्तेय कहिये ।। बाह्यवस्तुका ग्रहण होऊ तथा मति होऊ प्रमत्तयोगके होते स्तेय बणी रह्या है ॥ a आगें चौथा अब्रह्मका लक्षण कहा है ऐसे पूछे सूत्र कहै हैं
SR No.010558
Book TitleSarvarthasiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherShrutbhandar va Granthprakashan Samiti Faltan
Publication Year
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size28 MB
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