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सर्वार्थ
टीका
वचनिका पान २७३
आर्गे, जो ऐसे है भावनातै व्रत दृढ होय है, तो आदिमें कह्या जो अहिंसावन ताकी भावना कहा है ? ऐसे पूछे सूत्र कहें हैं--
॥ वाङ्मनोगुप्तीर्यादाननिक्षेपणसमित्यालोकितपानभोजनानि पंच ॥ ४ ॥ याका अर्थ-- वचनगुप्ति, मनोगुप्ति, ईर्यासमिति, आदाननिक्षेपणसमिति, आलोकितपानभोजन ए पांच अहिंसाव्रतकी सिद्धि
भावना हैं। तहां गुप्तिसमितिका स्वरूप आगे कहसी । बहुरि आलोकितपानभोजन कहिये आहारपाणी लेना सो दिनविर्षे २ नीकै देखिकरि लेना । इनका बार बार चितवन करना, सो भावना है ॥ __ आर्गे, दूसरे व्रतकी कहा भावना है, ऐसे पू॰ सूत्र कहै हैं--
॥ क्रोधलोभभीरुत्वहास्यप्रत्याख्यानान्यनुवीचिभाषणं च पंच ॥ ५॥ याका अर्थ- क्रोधका प्रत्याख्यान, लोभका प्रत्याख्यान, भयवानपणांका प्रत्याख्यान, हास्यका प्रत्याख्यान, अनुवीचिभाषणंकहिये निष्पाप सूत्रके अनुसार वचन बोलना ऐसें ए पांच भावना सत्यव्रतकी जाननी । इहां भावार्थ ऐसा, जो, क्रोधादिकके निमित्ततें असत्य बोलिये है, तिसका बार बार चितवन राखणा, तब असत्यकी प्रवृत्ति न होय, सत्यव्रत दृढ रहै ॥ आगें तीसरे व्रतकी कहा भावना है, ऐसे पूछ सूत्र कहै हैं
॥ शून्यागारविमोचितावासपरोपरोधाकरणभैक्ष्यशुद्धिसधर्माविसंवादाः पंच ॥६॥ याका अर्थ- शून्यागार कहिये गिरिकी गुफा वृक्षका कोटर इत्यादिविर्षे वसना, परका छोड्या ठिकाना होय सो विमोचितावास है तहां वसना, बहुरि परका उपरोध कहिये वर्जना सो न करना भावार्थ - जिस ठिकाणे आय बैठे तहां कोई और आवै ताकं वर्जें नाहीं तथा आपकू कोई मनें करै तहां बैठे नाहीं, बहुरि आचारशास्त्रके मार्गकरि भिक्षाकी
शुद्धता कर आहार ले, बहुरि यऊ वस्तिका तथा श्रावकआदि हमारे हैं यह तुमारे हैं ऐसा आपसमें साधर्मीनिझू विसंपवाद न करै ऐसे ए पांच भावना तीसरा अदत्तादानविरमणव्रतकी हैं ॥ इहां भावार्थ ऐसा, जो, वस्तिका भोजनआदि । वस्तुनिके आर्थ कोईतूं परस्पर झगडा उपजै तहां अदत्तादानका प्रसंग आवै है । तातें इन भावनातै व्रत दृढ रहै है ॥
आगें, ब्रह्मचर्यकी भावना कहनेयोग्य है सो कही ऐसे पूछै सूत्र कहै हैं