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वचनिका पान
टीका
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॥ स्त्रीरागकथाश्रवणतन्मनोहराङ्गनिरीक्षणपूर्वरतानुस्मरणवृष्येष्टरसस्वशरीर
संस्कारत्यागाः पंच ॥ ७॥ सर्वार्थ- याका अर्थ- इहां त्यागशब्द प्रत्येककै लगाय लेणां तहां स्त्रीनिकी रागसहित कथा सुननेका त्याग, स्त्रीनिका सुन्दर | सिदि मनोहर अंगका रागसहित देखनेका त्याग, वृष्य कहिये पुष्टरस कहिये रसीला झरता सर्वत आदिका त्याग, पहले भोग
किये थे तिनका बार बार यादि करनेका त्याग, अपने शरीरका संस्कार कहिये सवारना स्नान सुगंध लेपन इत्यादि करनेका त्याग ऐसे ए चौथे व्रतकी पांच भावना हैं । इनकं बार बार भाये ब्रह्मचर्यव्रत थिरता पावै है ॥ __ आगे पांचमा व्रतकी कहा भावना है, ऐसे पूछे सूत्र कहें हैं
॥ मनोज्ञामनोज्ञेन्द्रियविषयरागद्वेषवर्जनानि पंच ॥ ८॥ याका अर्थ- स्पर्शन रसन ब्राण चक्षु श्रोत्र ए पांच इन्द्रिय तिनके विषय जे स्पर्श रस गंध वर्ण शब्द इनका १ संबंध होते रागद्वेषका न करना ए पांच भावना आकिंचन्य नामा पांचवा व्रतकी जाननी ॥ भावार्थ ऐसा, जो, परिग्रह
हैं ते इन्द्रियनिके विषयके सेवनेके तथा कषाय पोषनेके अर्थि हैं, तातै विषयकपायका गुणदोष विचारिकरि भावना राखै, परिग्रहत्यागवत दृढ रहै है।
आगे कछु और कहै हैं, कि, जैसे इन व्रतनिकी दृढताके अर्थि व्रतनिका स्वरूप जाननेवाला ज्ञानीनिककरि भावनाका उपदेश किया है, तैसेंही तिन व्रतनिके विरोधी जे पांच पाप तिनविर्षे भी भावना राखणी । तिनके दोपनिका बार बार चितवन राखणां । ताते दृढव्रत रहै है । ताका सूत्र कहै हैं
॥ हिंसादिष्विहामुत्रापायावद्यदर्शनम् ॥९॥ याका अर्थ- हिंसादिक पांचपापनिविर्षे इस लोकवि तौ अपाय कहिये नाश तथा भय होय है । बहुरि परलोकविपैं पापतै दुर्गति होय है। ऐसा देखना बार बार विचारणा । तहां अभ्युदय कहिये स्वर्गादिककी संपदा पावना निःश्रेयस कहिये कल्याणरूप मोक्ष तिनके आर्थि जो क्रिया ताका नाश करनेवाला जो प्रयोग आरंभ, सो तौ अपाय कहिये । अथवा सात भयकू भी अपाय कहिये । अवद्य कहिये गर्दा निंद्य पाप इन दोऊनि देखने विचारनें । कहां देखने ?