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सायं
मिनि
टीका
भ
॥ सवैया ॥ २३ ॥
आश्रवभाव मुनीन्द्र कहे नय दोय विचार यथाविधि नीकी । शुद्धनयातम आश्रव एक चिदातम भावन रति जीकी ॥ सोउ अनेक विकारमयी लखि भेद अशुद्धनयाश्रित टीकी । इन्द्रिय अत्रत और कपाय क्रिया बहु जानि तजी जु अलीकी ॥
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ऐसे तत्वार्थ है अधिगम जाकरि ऐसा जो मोक्षशास्त्र, ताविपैं छठा अध्याय सम्पूर्ण भया ॥ ६ ॥
इति श्री परमपूज्य धर्मसाम्राज्यनायक योगींद्रचूडामणि, सिद्धांतपारंगत, चारित्रचक्रवर्ती श्री १०८ आचार्य श्रीशांतिसागरजी महाराजके आदेशसे ज्ञानदान के लिए श्री. प. पू. चा. च. आ. श्री १०८ शांतिसागर दिगंबर जैन जीर्णोद्धारक संस्थाकी ओरसे छपी हुई श्री तत्वार्थसूत्री श्रीमत्पूज्यपादाचार्य विरचित सर्वार्थसिद्धीकी पंडित जयचदजीकृता टीकावचनिकाविषै षष्ठम अध्याय संपूर्ण भया ॥ ६ ॥ ग्रंथ प्रकाशन समिति, फलटण वीर स. २४८१
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वचनिका
पान
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