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________________ -11 नीचैर्वृत्ति कहिये । बहुरि आपमें विज्ञानआदि अनेक गुण विद्यमान हैं, उत्क्लष्टपणां है, तो तिन गुणनिका मद न करै, . अहंकाररहित होय, सो अनुत्सेक कहिये । ते ए उत्तर कहता दूसरा गोत्रकर्म उच्चगोत्र ताके आश्रव हैं। इहां विस्तारका भी विपर्यय कहना । तहां जातिआदि आठ मद न करने, परकी निंदा न करनी, उद्धत न प्रवर्तना, परका उपहास अपवाद न करना, मानकपाय तीव्र न राखणा, पूज्यपुरुपकी पूजा विनय सत्कार वंदना करनी, बहुरि इस निकृष्टकालमें कोईमें भले गुण होय · जैसे हरेकमें न पाईये । तिनतें भी उद्धत न रहना, सो भी नीचैवृत्ति है । बहुरि निका अपना माहात्म्यका प्रकाशन आप न चाहै, तथा धर्मके कारणनिवि बडा आदर करै इत्यादि जानना ॥ २६७ आगें गोत्रकर्मके अनंतर कह्या जो अंतरायकर्म, ताका आश्रव कहा है ? ऐसे पूछे सूत्र कहे हैं। सर्वार्थ-RI पान ॥ विघ्नकरणमन्तरायस्य ॥२७॥ याका अर्थ-दानआदिके वि विघ्न करना, सो अंतरायकमका आश्रव है। तहां दान आदि तो पहले कहे तेही, दान लाभ भोगोपभोग वीर्य ए । तिनिका हनना घात करना बिगाडना सो विघ्न है । ताका करना सो अंतरायकर्मके । आश्रवकी विधि जाननी ॥ याका विस्तार- ज्ञानका निषेध करना, सत्कारका निषेध करना, दान लाभ भोगोपभोग वीर्य स्नान अनुलेपन सुगंध पुष्पमाला वस्त्र भूषण शयन आसन भोजन आदिका परकै विघ्न करना, परकी संपदा देखि आश्चर्य करना, अपना द्रव्यका अतिलोभते दानादिक न करने, सामथ्र्य होय तिसमें प्रदान करना, परकू झुठा दूषण लगावना, निर्माल्यद्रव्य लेना, निर्दोप उपकरणका त्याग करना, परका वीर्य लोपना, धर्मका विच्छेद करना, भला आचारविर्षे तपस्वी जनका पूजावि विघ्न करना, मुनिका तथा दीन अनायका वस्तु पात्र वस्तिकाका प्रतिषेध करना, परक क्रियाका रोकना, बांधना, गुह्यअंगका छेदना, कान नाक ओष्ठ काटना, प्राणिनिका घात करना इत्यादिक जानना ॥ इहां कोई पूछे, आश्रवका विस्तार सूत्रमें विना कह्या कैसे कहो हो ? ताका समाधान, जो, वेदनायके सूत्रमें इतिशब्द कहा है सो प्रकारार्थ में हैं ताकी अनुवृत्ति ले सर्वकर्मके आश्रवमें विस्तार कह्या है। ऐसें कह्या जो आश्रवका विधान तिसकरि उपजाया जो आठप्रकार ज्ञानावरणआदि कर्म तिनके निमित्ततें आत्माकै संसाररूप विकार तात आत्मा निरंतर भोग है। जैसे मदिराका पविनवाला अपनीही रुचित मोहविभ्रमके करनहारी मदिरा पीयकार ताके परिपाकके वशिकरि
SR No.010558
Book TitleSarvarthasiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherShrutbhandar va Granthprakashan Samiti Faltan
Publication Year
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size28 MB
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