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11 ईंटनिके पजावा पकावने, दौं लगावना आदि अग्निका प्रयोग करना, प्रतिमा तथा ताका आयतन कहिये मंदिर तथा ।।
वनकी वस्तिका बाग आदिका विनाश करना, तीन क्रोध मान माया लोभवि प्रवर्तना, पापकर्मकी आजीविका करनी इत्यादि जानने ॥ __ आगे शुभनामकर्मका कहा आश्रव है ऐसे पूछे सूत्र कहै हैं
वच॥ तद्विपरीतं शुभस्य ॥ २३ ॥
पान याका अर्थ-- अशुभनामकर्मका आश्रव कह्या तातें विपरीत कहिये उलटा शुभनामकर्मका आश्रव है । तहां काय ||२६३ | वचन मनका , सरलपणा बहुरि अविसंवादन ए तद्विपरीत हैं। बहुरि पहले चशब्दकरि समुच्चय किये थे तिनके विपरीत लेणे । धर्मात्मा पुरुषनिका दर्शन करना, तिनका आदर सत्कारकार अपने हितू मायने, संसारतें भय करना, प्रमादका वर्जन करना इत्यादिक ए शुभनामकर्मके आश्रवके कारण जानने । इहां भी पूर्व विशेष कहे तिनते । उलटे जान लेणे ॥ ____ आगें, शुभनामकर्मका आश्रव कहा एतावन्मात्रही है, कि कोई और भी विशेष है ? ऐसे पूछै इहां कहै कि, जो, यह तीर्थकरनामपणां नामा नामकर्म है, सो अनंत अनुपम प्रभावकू लिये है, बहुरि अचिंत्यविभूतिविशेषका कारण है ।
तीनि लोकविर्षे विजय करणहारा है; सर्व त्रैलोक्यके इन्द्रादिकरि पूज्य है, ताका आश्रवकी विधि विशेषरूप है । तहां M फेरि पूछ है, जो, ऐसा है तो कहो ताके आश्रवके कारण केते हैं ? ऐसे पूछ सूत्र कहै हैं
॥ दर्शनविशुद्धिविनयसम्पन्नता शीलवतेष्वनतीचारोऽभीक्ष्णज्ञानोपयोगसंवेगौ शक्तितस्त्यागतपसी साधुसमाधियावृत्यकरणमहंदाचार्यबहुश्रुतप्रवचनभक्ति
रावश्यकापरिहाणिमार्गप्रभावनाप्रवचनवत्सलत्वमिति तीर्थकरत्वस्य ॥२४॥ याका अर्थ-- ए सोलह भावना हैं ते तीर्थंकरनामा नामकर्मके आश्रव हैं । तहा जिनभगवान् अरहंतपरमेष्ठीका उपदेश्या कह्या जो निर्ग्रन्थलक्षण मोक्षमार्ग ताविर्षे रुचि प्रतीति श्रद्धा सो दर्शन कहिये, ताकी विशुद्धि कहिये पहले कही
निरतिचारपणा सो जानना । याके आठ अंग हैं निःशंकितत्व, निःकांक्षितत्व, निर्विचिकित्सा, - अमूढदृष्टिता, उपबृंहण, 12 स्थितीकरण, वात्सल्य, प्रभावना ऐसें । तहां इहलोक परलोक व्याधिवेदना मरण अरक्षण अगुप्ति अकस्मात् ए सात भय