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________________ वच टीका पान २६२ । वर्षकी आयु तै उपज्या सो आयुबंधके निमित्ततें अंतसमय अप्रत्याख्यानावरणका ऐसा तीव्रस्थानकउदय आया, जो, अप| घातकरि मरण भया, तातें तहां उपज्या । सो पूर्वै मिथ्यात्वमें आयु न बंधै ताकै तौ मनुष्यतिर्यचकै कल्पवासी देवहीकी । आयुका आश्रव होय है ऐसा अर्थ जानना ॥ मा आगैं, आयुकर्मकै अनंतर रह्या जो नामकर्म, ताका आश्रवकी विधि कहनी, तहां अशुभनामकर्मके आश्रव जाननेके । सिद्धि । अर्थि सूत्र कहै हैं निका ॥ योगवक्रता विसंवादनं चाशुभस्य नाम्नः ॥ २२ ॥ याका अथ- मनवचनकायके योगनिकी वक्रता कहिये कुटिलता बहुरि विसंवाद कहिये अन्यकू अन्यथा प्रवर्तावना ए दोऊ अशुभनामके आश्रवके कारण हैं । तहां योग तीनिप्रकार तो पहले कह्या सोही हैं, तिनकी वक्रता कहिये कुटिलता मनमें कछू और विचारणा, पीछे परकू ठगनेके अर्थि वचन" कछू और कहना, बहुरि कायतें कछू और क्रिया करणी, जाकरि पैला ठिगाय जाय ऐसे भुलावा देणां सो कुटिलता है। बहुरि विसंवाद कहिये अन्यकुं अन्यथा प्रवर्तावना । इहां कोई कहै, योगनिकी वक्रता सोही अन्यथा प्रवर्तन है इनमें अर्थभेद दीखै नाहीं । ताकू कहिये, जो, यह तो सत्य है, परंतु अर्थभेद भी है । आपकी अपेक्षा तो योगवक्रता है। विसंवाद परकी अपेक्षा है । पैला कोई अपना आत्मकल्याण करनहारी जो भली स्वर्गमोक्षके उपायकी क्रिया तावि प्रवर्तता होय, ताकू भुलाय आप तिसकी क्रियाकू मन वचन कायतें अन्यथा कहै, ताका विसंवाद करै निंदा करें; ऐसैं कहैं, जो ' यह क्रिया मति कर बुरी है हम कहें । जैसी कार । ऐसे ठगनेके अर्थि करै सो विसंवादन है। ए दोऊं अशुभनामकर्मके आश्रवके कारण जानने ॥ इहां सूत्रमें चशब्द है ताकार मिथ्यादर्शन, अदेखसाभाव, चुगली खाणी, चलायमानचित्तपणां, होनाधिक मान ताखडी तौला करना, परकी निंदा करणी, आपकी प्रशंसा करनी इत्यादिक समुच्चय करना । इहां विशेष और लेणें । खोटे सुवर्ण मणि आदि बनाय तिससारिखे बनाय ठगाना, झूठी साखि भरना, परके अंग उपांग विगाडने, वर्ण रस गंध स्पर्शका अन्यथा प्रवर्तन करना, यंत्र पीजरे बणावने, अन्यद्रव्यका अन्य द्रव्यवि संबंधकरि कपटकी प्रचुरता करणी, झूठ बोलना, चोरी करना, घणा आरंभ करना, परिग्रहकी चाह तीत्र राखनी, परके ठगनकू उज्वल वेश करना, मद करना, कठोर वचन बोलने, बुरा प्रलाप बकना परकू वश करनेकू अपना सौभाग्य दिखावना, परकू कुतूहल उपजावना, Lal सुंदर अलंकार पहरने, चैत्यमंदिरके उपकरण पूजाकी सामग्री चोरना, परकू वृथा विलमाय राखना, परका उपहास करना, ol BAS540104 000003 10
SR No.010558
Book TitleSarvarthasiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherShrutbhandar va Granthprakashan Samiti Faltan
Publication Year
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size28 MB
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