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________________ वच बहुरि आपके शोक उपजावना परकै शोक होय तामें हर्ष मानना इत्यादिकतै शोकवेदनीयका आश्रव होय है । बहुरि अपने परिणाम भयरूप राखने परकै भय उपजावनां इत्यादिकतै भयवेदनीयका आश्रव होय है । बहुरि भले आचारक्रियाविर्षे | जुगुप्सा राखणी, ताकी निंदा करणी, परका अपवाद करनेहीका स्वभाव राखना इत्यादिकते जुगुप्सावेदनीयका आश्रव होय है । I बहुरि झूठ बोलनेहीका स्वभाव राखना, परकू ठगनेवि तत्पर रहना, परके छिद्र दूपण हेरनेविर्षे अपेक्षा राखणी, सिद्धि । अतिवधते राग, काम कुतुहलादिकके परिणाम राखने इत्यादिकतें स्त्रीवेदवेदनीयका आश्रव होय है। बहुरि थोरे क्रोध निका टो का आदि कपायनिकार लिप्त होना, अपनी स्त्रीहीवि संतोप राखना इत्यादिकतें पुरुषवेदवेदनायका आश्रव हाय है । बहुरि पान 1 प्रचुरकषाय परिणाम गुडेंद्रिय लिंग आदिकका काटना, परस्त्रीविर्षे आसक्तताते वशीभूतपणा इत्यादिकतै नपुंसकवेद २५८ वेदनीयका आश्रव होय हैं । आगें, मोहनीयकर्मका आश्रवभेद कहे, अर ताके अनंतर कह्या जो आयुकर्म, ताके आश्रवके कारण कहने हैं। तामें आदिका नारकीजीवनिका आयुआश्रवका कारण कहनेकू सूत्र कहै हैं । कैसा है यह आयु ? नियमरूप है उदयकाल | जाका, इनका आयु छिदै नाहीं है ॥ ॥ बह्वारम्भपरिग्रहत्वं नारकस्यायुषः ॥ १५॥ याका अर्थ- बहुतआरंभपणा तथा बहुतपरिग्रहपणां नारकीके आयुके आश्रवकौं कारण है । तहां प्राणीनिळू पीडाका कारण व्यापार प्रवर्तन करना, सो तौ आरंभ है । बहुरि मेरा यह है एसा ममत्वभाव है लक्षण जाका, सो पारग्रह है। बहुरि ए जाके बहुत होय सो बहुआरंभपरिग्रह कहिये । सो कहा ? हिंसा आदि पंच पापनिवि क्रूरकर्म करना निरंतर प्रवर्तना, परधन हरणां, विपयनिकी अतिलोलुपता करणी, कृष्णलेश्याकार तज्या जो रौद्रध्यान तिससहित मरणा इत्यादिक हैं लक्षण जाका, सो नरकआयुका आश्रव है । याका विशेप- मिथ्यात्वसहित आचार, उत्कृष्टमानकषाय, शिलाभेदसदृश क्रोध, तीव्रलोभवि अनुरागपणां, अनुकंपारहित परिणाम परकै परिताप उपजावनेहीके भाव, वधबंधनका अभिप्राय, प्राणी भूत जीव सत्व इनका निरंतर घातहीके परिणाम, ऐसाही असत्यवचन, कुशील, चोरीका अभिप्राय, दृढ वैर, परके उपकारतें विमुख परिणाम, बहुरि देवगुरुशास्त्रका भेदकरि बुद्धिकल्पित मत चलावना इत्यादि जानना ॥ आर्गे नारकआयुका आश्रव तौ कह्या अब तिर्यंचयोनिका आश्रव कहना, ऐसें पू? सूत्र कहें है
SR No.010558
Book TitleSarvarthasiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherShrutbhandar va Granthprakashan Samiti Faltan
Publication Year
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size28 MB
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