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निका
सिद्धि टी का
पान
अ.६
॥ माया तैर्यग्योनस्य ॥ १६ ॥ याका अर्थ--- माया कहिये कुटिलपरिणाम सो तिर्यंचयोनिका आश्रव है। तहां चारित्रमोहकर्मका विशेषका उदयतें प्रगट हूवा आत्माका कुटिलभाव सो माया है याकू निकृति भी कहिये, सो यहू तिर्यचयोनिका आश्रव जानना । याका
वचविस्तार- मिथ्यात्वसहित धर्मका उपदेश देना, शीलरहितपणां, पर ठगनेके विर्षे प्रीतिरूप परिणाम, नीलकापोतलेश्या, आर्तध्यानकरि मरना इत्यादिक जानना ॥
२५९ ___ आगें, तिर्यंचयोनिका आयुका आश्रव कह्या अब मनुष्यआयुका आनवका कारण कहा है ? ऐसे पू॰ सूत्र कहै हैं- 15
॥ अल्पारम्भपरिग्रहत्वं मानुषस्य ॥ १७ ॥ याका अर्थ-अल्पारंभपणा अल्पपरिग्रहपणा है सो मनुष्यके आयुका आश्रवका कारण है। तहां जो नारकका आयुका आश्रव कह्या था, तातै विपरीति कहिये उलटा मानुषआयुका आश्रव है । ऐसा तो संक्षेपकरि जानना । बहुरि याका विस्तार ऐसा- विनययुक्तस्वभाव होय, प्रकृतिहीकरि भद्रपरिणाम होय, मनवचनकायकी सरलतातूं व्यवहार करे, थोरे कषाय होय, मरणकालविर्षे संक्लेशपरिणाम नाहीं होय इत्यादिक जानना ॥ भावार्थ ऐसा, जो, पापपुण्यरूप मिश्रमध्यके परिणामनितें मनुष्यआयुका आश्रव होय है ॥ ____ आगें प्रश्न, जो, मनुष्यआयुका आश्रव एतावन्मात्रही है, कि कछु और भी है ? ऐसे पूछे उत्तरका सूत्र कहैं हैं
॥ स्वभावमार्दवं च ॥ १८॥ याका अर्थ- स्वभावहीकरि कोमलभाव होय सो भी मनुष्यआयुका आश्रव है । इहां मृदुका भाव सो तो मार्दव है, सो अन्यकारणकी अपेक्षारहित स्वभावहीकार मार्दव होय, सो तौ मार्दव कहिये । यह भी मनुष्यआयुका आश्रव है । इहां पहले सूत्रतें न्यारा सूत्र किया, ताका यह प्रयोजन है, जो, आगें देवआयुका आश्रव कहेंगे, सो स्वभावमार्दव | देवायुका भी आश्रव है ऐसा जणाया ॥ ____ आगें पूछे है कि ए दोयही मनुष्यायुके आश्रव हैं कि और भी हैं ? ऐसे पूछ सूत्र कहैं कहैं---