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________________ वचनिका पान २५२ कर्मका आश्रव होय है, तिनके भावनिके ए विशेष हैं । ऐसें सामान्यकरि तौ आश्रवके भेद कहे ॥ । अब कर्मनिके विशेषकार आश्रवके भेद कहने वक्तव्य होते आदिके ज्ञानावरण दर्शनावरण कर्म तिनके आश्रवके । भेद जाननेकू सूत्र कहैं हैंसर्वार्थ । ॥ तत्प्रदोषनिन्हवमात्सर्यान्तरायासादनोपघाता ज्ञानदर्शनावरणयोः ॥१०॥ सिद्धि याका अर्थ-- तिस ज्ञानदर्शनके विर्षे प्रदोष निह्नव मात्सर्य अंतराय आसादन उपघात इनका करना, सो इन भ.६ | दोऊनिकै आवरणकर्मनिका आश्रव करै है। तहां मोक्षका कारण जो तत्वज्ञान ताका कोई पुरुष कथन प्रशंसा करता होय ताकू कोई सराहै नाहीं तथा ताकू सुणिकरि आप मौन राखै अंतरंगविर्षे वासूं अदेखसाभावकरि तथा ज्ञानकू दोष लगावनेके अभिप्रायकरि वाका साधक न रहै, ताके ऐसे परिणामकू प्रदोष कहिये । बहार आपकू जिसका ज्ञान होय अर कोई कारणकरि कहै जो नाहीं है, तथा मैं जान नाहीं । जैसें काहूंने पूछ्या जो हिंसातें कहा होय १ तहां आप जानें है जो हिंसातें पाप है, तहां कोई हिंसक पुरुप बैट्या होय ताके भयतें तथा आपकू हिंसा करनी होय तथा • आपके अन्य कछु कार्यका आरंभ होय इत्यादिक कारणनितें कहै, जो, मैं तो जानूं नाही, तथा कहै हैं, हिंसामें पाप । पाप नाही इत्यादिकार अपने ज्ञानकू छिपावै, ताकू निह्नव कहिये बहुरि आप शास्त्रादिका ज्ञान भलेप्रकार पढ्या होय । पैलेकू शिखावनेयोग्य होय तौ कोई कारणते शिखावै नाहीं । ऐसे विचारै, जो पैलेकू होय जायगा तो मेरी बरोबरी करैगा इत्यादि परिणामकू मात्सर्य कहिये ॥ बहुरि ज्ञानका बिच्छेद करै विघ्न पाडै ताकू अंतराय कहिये ॥ बहुरि परके तथा आपका प्रगट करने योग्य ज्ञान होय ताईं वचनकरि तथा. कायकरि बजै . ग्रगट करै, नाहीं तथा परकू कहै ज्ञानकू प्रकाशै । मति, इत्यादि कहै सो आसादना कहिये । बहुरि सराहने योग्य साचा ज्ञान होय ताळू दूपण लगावै सो उपधात कहिये । इहां कोई कहै, दूपण लगावणा उपधात कह्या सो तो आसादनाही भई ताकू कहिये, जो छते ज्ञानकू सद्विज्ञानका विनय करना तथा प्रदान कहिये शिखावने आदि तथा ज्ञानके गुणानुवाद करना इत्यादि न करै सो तो आसादना है । बहुरि साचे ज्ञानकू कहै यह ज्ञान झूठा है तथा ज्ञानही नाहीं ऐसे कहना तथा ज्ञानके नाशका आभिप्राय सो उपधात है । ऐसा भेद | जानना । बहुरि सूत्रमें तत्शब्द है ताकार ज्ञानदर्शन लेना ॥ इहां पूछे, जो, इहां ज्ञानदर्शनका प्रकरण नाही, विना कहे कैसे लेने ? ता कहिये, इहां प्रश्नकी अपेक्षा है
SR No.010558
Book TitleSarvarthasiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherShrutbhandar va Granthprakashan Samiti Faltan
Publication Year
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size28 MB
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