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बत्तीस
साय-
सिदि
निका
पान
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कायसरंभ । ऐसें बारह कायसंरंभ भये । ऐसे बचनयोग मनोयोगविर्षे बारहबारह प्रकार संरंभ होय । ते भेले किये छत्तीस | होय । तैसेंही छत्तीस समारंभ होय । तथा तैसेंही आरंभ होय । सर्व जोडि जीवाधिकरण एकसोआठ होय हैं । बहार
सूत्रमें चशब्द है सो अनंतानुबंधी अप्रत्याख्यानावरण प्रत्याख्यानावरण संज्वलन जे कषायके भेद च्यारि तिनकार च्यारिसैं KI बत्तीस भेद होय हैं । ऐसें असंख्यातभेदके समुच्चयके अर्थि हैं ॥ आगें दूसरा अजीवाधिकरणके भेद जाननेके आर्थि सूत्र कहै हैं
॥निर्वर्तनानिक्षेपसंयोगनिसर्गा द्विचतुर्द्वित्रिभेदाः परम् ॥ ९॥ याका अर्थ- निर्वर्तना निक्षेप संयोग निसर्ग ये च्यारि । तहां निर्वर्तनाके भेद दोय, निक्षेपके च्यारि भेद, संयोगके दोय भेद, निसर्गके तीनि भेद । ए अजीवाधिकरण हैं, ते संरंभादिकते परं कहिये अन्य हैं। तहां जो निपजाईये सो निर्वर्तना है । बहुरि जो निक्षेपणा करिये धरिये सो निक्षेप है। बहार जो संयोजन करिये मिलाईये सो संयोग | है । बहुरि जो निसर्जन करिये प्रवर्ताईए सो निसर्ग है । इनका दोय आदि संख्याते अनुक्रमते संबंध करिये । निर्वर्तनाके दोय भेद, निक्षेपके च्यारि भेद, संयोगके दोय भेद, निसर्गके तीनि भेद ए अजीवाधिकरणके भेद हैं । इहां सूत्रमें परवचन है, ताका अन्य ऐसा अर्थ लेणा । ए संरंभादिक जीवाधिकरण कहे तिन” अन्य हैं । जो ऐसा न लीजये तो निर्वर्तना आदि जीवहीके परिणाम हैं । तातें जीवाधिकरणही ठहरै । तहां निर्वर्तना अधिकरण दोय प्रकार है । मूलगुणनिर्वर्तना उत्तरगुण निवर्तना । तहां मूल पांचप्रकार, शरीर वचन मन उच्छ्वास निःश्वास ऐसे इनका निपजावना । बहार उत्तर काष्ठ पुस्त चित्रकर्म इत्यादि इनका निपजावना ॥
बहुरि निक्षेप च्यारिप्रकार । तहां अप्रत्यवेक्षितनिक्षेपाधिकरण कहिये विना देख्या वस्तु निक्षेपणा स्थापना । दुःप्रमृष्टनिक्षेपाधिकरण कहिये पृथ्वीआदिक बुरीतरह बुहारे मर्दन किये वस्तु धरना । सहसानिक्षेपाधिकरण काहिये शीघ्र वस्तु धरना पटकि देणां । अनाभोगनिक्षेपाधिकरण कहिये वस्तु, जहां धरी चाहिये. तहां. न. धरणां जैसे तैसे, हरेक जायगा धरणां । बहार संयोग दोयप्रकार । तहां भुक्तपानसंयोगाधिकरण कहिये भोजनपानका मिलावणां करण कहिये जिन वस्तुनितें कार्य किया चाहिये तिन उपकरणनिका संयोग करणां मिलावनां । बहुरि निसर्ग तीनिप्रकार | तहां कायनिसर्गाधिकरण कहिये कायका प्रवर्तन करना । वाग्निसर्गाधिकरण कहिये वचनका प्रवर्तन करना । मनोनिसर्गाधिकरण कहिये मनका प्रवर्तन करना । इहां भावार्थ ऐसा जानना, जो, जीव अजीव द्रव्य हैं तिनकै आश्रय आधारकरि