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भवच
सिदि टीका
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.. ॥ अधिकरणं जीवाजीवा : ॥७॥ याका अर्थ- आश्रवका अधिकरण जीवद्रव्य अजीवद्रव्य ऐसें दोयभेद लिये है । तहां जीव अजीवका लक्षण पहले । कह्या तेही हैं । इहां अधिकरणविशेष जनावनेत फेरि नाम कहे हैं। सो अधिकरण हिंसाआदिका उपकरणपणा है ।। सर्वार्थ। इहां कोई कहै, जीव अजीव मूलपदार्थ दोयही हैं । तातें सूत्रमें द्विवचन चाहिये । ता• कहिये, ऐसें नाहीं है । इहां निका अधिकरणसामान्य नाहीं है । जीव अजीवके पर्याय अधिकरण हैं । तातें जिसतिस पर्यायसहित द्रव्य बहुतप्रकार हैं ।
पान १. तातें बहुवचन है । सो यह अधिकरण आश्रवका है ऐसा संबंध अर्थके वशते सूत्र में कारण ॥
आगें जीवाधिकरणके भेद जाननेके अर्थि सूत्र कहै हैं॥ आयं संरम्भसमारम्भारम्भयोगकृतकारितानुमतकषायविशेषैत्रिस्त्रिस्त्रिश्चतुश्चैकशः ॥८॥
याका अर्थ-- आदिका जीवाधिकरण है, सो संरंभ समारभ आरंभ ए तीनि बहुरि मन वचन काय योग तीनि, कृत कारित अनुमोदना ए तीनि, क्रोध मान माया लोभ कपाय च्यारि ए एक एकप्रति देना ऐसा परस्पर गुणे एकसौ आठ भेदरूप है । तहां प्रमादी जीवकै हिंसाआदिकेविर्षे प्रयत्न कहिये उद्यमरूपपरिणाम सो संरंभ है । बहुरि हिंसाके कारणका अभ्यास करना सामग्री मिलावणी सो समारंभ है । प्रक्रम कहिये आरंभ करणा सो आरंभ है । ऐसें ए तीनि भये । बहुरि योगपूर्वं कहेही । मन वचन काय भेद लिये तीनि । बहुरि कृत कहिये आप स्वाधीन होय करै सो, कारित कहिये परकने करावै सो, अनुमत कहिये पैला करै, ताक़ आप मन वचन कायकार भला जाने ऐसें तीनि । बहुरि क्रोध मान माया लोभ ए च्यारि कपाय इनका लक्षण पूर्व कह्या सोही ऐसें । विशेषशब्द इन सर्वनिक संबंध करणा । संरंभविशेष समारंभविशेप इत्यादि । जाकरि अर्थकू अन्य अर्थ लेकरि जुदा कीजिये सो विशेषशब्दका अर्थ है। ऐसे आदिका जीवाधिकरण है, सो एते विशेषनिकरि भेदरूप कीजिये है। बहुरि त्रिआदि च्यारि शब्द हैं, ते सुचप्रत्ययान्त हैं, ते यथानुक्रम संबंधकार लेने । संरंभादि तीनि, योग तीनि, कृत आदि तीनि, कपाय च्यारि इन गणतीकी रीति सुच्प्रत्ययकार जाणिये है । बहुरि एकशः शब्दकरि वीप्स्या कही है । एक एकप्रती तीनि आदि भेद प्राप्त करने, सोही कहिये हैं। क्रोधकृतकायसंरंभ, मानकृतकायसंरंभ मायाकृतकायसंरंभ, लोभकृतकायसंरंभा, क्रोधकारितकायसंरंभ, मानकारितकायसंरंभ, मायाकारितकायसंरंभ, लोभकारितकायसंरंभ, क्रोधानुमतकायसंरंभा, मानानुमतकायसंरंभ, मायानुमतकायसंरंभ लोभानुमत