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वच
सिति
हा जो, कालाणु एक है तो अनंतपर्यायनिकू वर्तनाका कारण है । तातै ताकेवि अनंतपणाका उपचार कीजिये है । बहुरि ।
समय है सो उत्कृष्टपणे कालका अंश है । तिसके समूहविशेपकू आवली इत्यादि जाननी ॥ । आगें, गुणपर्ययवद् द्रव्य है ऐसा कह्या, तहां गुण कहां ? ऐसे पूछे सूत्र कहै हैंसार्थ
निका टीका ॥ द्रव्याश्रया निर्गुणा गुणाः ॥४१॥
पान याका अर्थ- जिनका द्रव्य आश्रय है बहार जे आप अन्यगुणनिकार रहित हैं, ते गुण हैं, इहां निर्गुण ऐसा गुणनिका विशेपण है, सो कौन अर्थि है सो कहिये है । दोय आदि परमाणुनिका स्कंध भी द्रव्यकै आश्रय है। जातै ।। परमाणुनितें भया है सो द्रव्याश्रया गुणा एताही कहिये तो तिन स्कंधानकै गुणपणां ठहरता । तातें निर्गुण कहनेतें तिनके गुणका निषेध भया ते स्कंध भी गुणसहित हैं, तातें द्रव्यही हैं, गुण नाहीं हैं । बहुरि द्रव्याश्रया इसविशेषणते पर्यायनिक गुणपणाका निषेध होय है । जाते गुण हे ते तो द्रव्यतै नित्य संबंधरूप हैं । पर्याय हैं ते क्रमतें होय । सो कदाचित् होय विनशि नाय हैं । ताते जे नित्यही द्रव्यकू आश्रयकरि प्रवते ते गुण हैं । ऐसें पर्याय हैं ते गुण नाहीं हैं । तहां जीवके गुण अस्तित्व आदिक तौ साधारण । बहुरि ज्ञानादिक असाधारण । पुद्गलके अचेतनत्व आदि साधारण । रूप आदिक असाधारण । बहुरि पर्याय जीवके घटका ज्ञान आदिक हैं । पुद्गलके घट कपाल आदिक हैं ॥
आगें पूछे है बारबार परिणामशब्द कया ताका कहा अर्थ है ? ऐसें पूछे उत्तरका सूत्र कहै हैं
॥ तद्भावः परिणामः॥ ४२ ॥ याका अर्थ-द्रव्य जिस स्वरूप परिणमे, ताकू जिनका भाव कहिये, ऐसा तद्भाव है, सो परिणाम है । इहां इस सूत्रको कहनेका अन्यप्रयोजन कहै हैं । गुण हैं ते द्रव्यतें जुदे पदार्थ हैं, ऐसा अन्य कोईका मत है । सो स्याद्वादीनिकू अन्यमती कहै हैं । तुमारै यह मान्य है कि नाही ? ताकू आचार्य कहें हैं, जो, तुम मानूं जैसैं तौ जुदा पदार्थ नाहीं मानें हैं, कथंचित् संज्ञासंख्यादि भेदकी अपेक्षाकरि द्रव्यतै गुण भेदरूप भी मानें हैं, तथापि तिसतै प्रदेशनिकी अपेक्षाम कार अभेद है । जाते तिस द्रव्यहाके परिणाम हैं । तातें जुदे नाहीं । ऐसें कहते पूछे हैं, जो, तुम परिणाम कह्या सो