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॥ सद् द्रव्यलक्षणम् ॥२९॥ याका अर्थ द्रव्यका लक्षण सत् है । जो सत् है सोही द्रव्य है ऐसा जानना । यह सामान्य अपेक्षाकरि द्रव्यका I लक्षण है । जाते सर्व द्रव्य सत्मयी हैं ॥ आगें पूछे है, जो ऐसे है सत् द्रव्यका लक्षण है तौ सत् कहा है ! सोही कहो । ऐसें पूछे सूत्र कहै है
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॥ उत्पादव्ययध्रौव्ययुक्तं सत् ॥ ३०॥
२३१ याका अर्थ- उत्पाद व्यय ध्रौव्य तीकरि युक्त है सो सत् है । तहां चेतन तथा अचेतन द्रव्यकै अपनी जातिकू। नाहीं छोडनेकै निमित्तके वशतें एकभावतें अन्यभावकी प्राप्ति होना सो उत्पाद है । जैसैं मांटीके पिंडकै घटपर्याय होना । तैसेंही पहले भावका अभाव होना सो व्यय है । जैसैं घटकी उत्पत्ति होते पिंडके आकारका नाश होना । बहुरि ध्रुवका भाव तथा कर्म होय तार्क ध्रौव्य कहिये । जैसे मांटीका पिंड तथा घट आदि अवस्थावि मांटी है सो अन्वय कहिये । | सो पिंडमैं था सोही घटमें है तैसें । ऐसें उत्पाद व्यय ध्रौव्य इन तीनहीकरि युक्त होय सो सत् है ॥ । इहां तर्क, जो, युक्तशद्ध तौ जहां भेद है तहां देखिये है । जैसे दंडकरि युक्त देवदत्त कहिये कोई पुरुष होय ताकू
दंडयुक्त कहिये है । जो ऐसे तीनि भाव जुदे जुदेनिकरि युक्त है तौ द्रव्यका अभाव आवै है। ताका समाधान, जो, यह दोष नाहीं है । जाते अभेदविर्षे भी कथंचित् भेदनयकी अपेक्षाकरि युक्तशर देखिये है । जैसैं सारयुक्त स्तंभ है । इहां स्तंभते सार जुदा नाही, तौ युक्तशद्व देखिये है । तैसें उत्पाद व्यय ध्रौव्य इन तीनूंका अविनाभावतें सत्का लक्षण बणै
है । अथवा युक्तशब्दका समाहित भी अर्थ होय है । युक्त कहिये समाहित तदात्मक तत्स्वरूप ऐसा भी अर्थ है। तातै । । उत्पाद व्यय ध्रौव्यस्वरूप सत् है, ऐसा अर्थ निर्दोष है । तातें इहां ऐसा सिद्ध होय है, जो, उत्पाद आदि तीनि तौ
द्रव्यके लक्षण हैं । अरु द्रव्य लक्ष्य है। तहां पर्यायार्थिक नयकी अपेक्षाकार तो तीनही द्रव्यते तथा परस्पर अन्य अन्य
पदार्थ हैं । बहुरि द्रव्यार्थिकनयकी अपेक्षाकरि जुदे नाहीं दीखै हैं । तातें द्रव्यतें तथा परस्पर एकही पदार्थ है। ऐसे ६ भेदाभेदनयकी अपेक्षाकार लक्ष्यलक्षणभावकी सिद्धि हो है ॥ प इहां कोई कहै हैं, जो, ध्रौव्य तौ द्रव्यका लक्षण अर उत्पाद व्यय पर्यायका लक्षण ऐसे कहना था, यामें विरोध
न आवता, श्रेयात्मक द्रव्यहीका लक्षण कहने में विराधे है । ताका समाधान जो, ऐसे कहना अयुक्त है । जाते सत्ता तौ