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।। स्कंधते तिसही काल संघात हुवा, ऐसें भेदसंघाततै स्कंध उपजें हैं । ऐसें स्कंधनिकी उत्पत्ति कही ।
___ आगें परमाणुनिकी उत्पत्तिका कारण दिखावने सूत्र कहें हैं
सर्वार्थ
वच
|निका
सिद्धि टीका
| पान
२३०
॥ भेदादणुः ॥ २७॥ याका अर्थ- परमाणु है सो भेदहीः उपजै है, संघातते नाहीं उपजै है । इहां अणु भेदहीतें उपजै है, ऐसी सिद्धी तो पहले सूत्रकी सामर्थ्यहीत होय है । फेरि यह सूत्र है सो अणुभेदहीते होय है, संघातते नाहीं होय है, ऐसा नियमके अर्थि है । जाते व्याकरणविर्षे परिभाषासूत्र ऐसें है, सो सिद्ध भये पीछे फेरि जाकी विधि करिये सो नियमके
अर्थि है, ऐसें जानना ॥ ___आगै पूछे हैं, जो संघांततेही स्कंधनिकी उत्पत्ति सिद्ध भई बहुरि भेदसंघातग्रहणका कहा प्रयोजन है ! ऐसैं पूछे ताका प्रयोजन दिखावने सूत्र कहैं हैं
॥ भेदसंवाताभ्यां चाक्षुषः ॥ २८॥ याका अर्थ- नेत्रगोचर जो स्कंध होय है सो भेदसंघात दोऊतें होय है । स्कंध है सो अनंतानंतपरमाणुनिकार उपजै है । तौ कोई इन्द्रियगोचर होय है । कोई इन्द्रियगोचर नाहीं होय है । तहां जो इन्द्रियगोचर नाहीं है, सोही BI कैसे इन्द्रियगोचर होय है १ तहां कहिये, जो, भेद संघात इन दोऊनितें चाक्षुष होय है भेदतें न होय है । इहां
चाक्षुष कहनेते इन्द्रियनिकरि ग्रहणमैं आवनेयोग्य होय सो लेणा । सो उत्पत्ति कैसे है ? सो कहिये है । जो सूक्ष्मपरिणाम स्कंध है, ताका भेद होते तो सूक्ष्मपणाकू छोडै नाहीं । तातें सूक्ष्म इन्द्रियनितें अगोचरही रहै । बहुरि कोई सूक्ष्म | परिणया स्कंध होय ताका भेद होते अन्य जो स्कंध होय ताते संघातरूप होय मिले। तव सूक्ष्मपरिणाम छोडि स्थूल|पणाकी उत्पत्तितें चाक्षुप होय है ॥
___ आगें पूछे है, धर्म आदिक द्रव्यनिके विशेषलक्षण तो कहे । तथापि सामान्यद्रव्यका लक्षण न कह्या, सो कह्या चाहिये । ऐसें पूछे सूत्र कहैं हैं